Book Title: Panchsangraha Part 09
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 214
________________ उपशमनादि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट ८ १८५ किट्टियों में रस की अपेक्षा दूसरे समय में की गई किट्टियों में रस अनन्तगुण हीन यानि अनन्तवें भाग प्रमाण होता है और उससे भी तीसरे समय में की गई किट्टियों में रस अनन्तगुण हीन होता है । इस प्रकार पूर्व-पूर्व के समय की अपेक्षा उत्तर-उत्तर के समय में की गई किट्टियों में क्रमशः अनन्तगुण हीनहीन रस होता है। प्रथम समय की गई सभी किट्टियों का दलिक बाद के समय की गई किट्टियों के दलिक की अपेक्षा अल्प होता है और प्रथम समय की समस्त किट्टियों के दलिक से दूसरे समय की गई किट्टियों का दलिक असंख्यातगुण, उससे भी तीसरे समय की गई किट्टियों का दलिक असंख्यातगुण होता है । इस प्रकार पूर्व-पूर्व समय की अपेक्षा उत्तर-उत्तर के समय में की गई किट्टियों का दलिक क्रमशः असंख्यात असंख्यात गुण होता है । __यह अल्पबहत्व तो हआ पूर्व-पूर्व के समय से उत्तर-उत्तर के समय में की गई किट्टियों के रस और दलिकों का तथा प्रत्येक समय की गई किट्टियों का परस्पर अल्पबहुत्व इस प्रकार जानना चाहिए प्रथम समय में की गई अनन्त किट्टियों में से सब से अल्परस वाली जो किट्टि है, उसे प्रथम स्थापन कर उसके बाद उत्तरोत्तर प्रवर्धमान अधिक रसवाली प्रथम समय की गई सभी किट्टियों का अनुक्रम से स्थापन करें तो प्रथम किट्टि में सबसे अल्प रस होता है, उससे दूसरी किट्टि में अनन्तगुण, उससे तीसरी में अनन्तगण इस प्रकार पूर्व-पूर्व किट्टि की अपेक्षा आगे-आगे की किट्टि में अनन्तगुण रस होता है और उसी प्रथम समय की गई अनन्त किट्टियों में की जो सर्वाल्प रस वाली प्रथम किट्टि है, उसमें उसी प्रथम समय की गई अन्य किटियों के दलिक की अपेक्षा अधिक दलिक होते हैं और अनन्तगण अधिक रस वाली आगे-आगे की किट्टि में विशेष हीन-हीन दलिक होते हैं। ___ इसी प्रकार किट्टिकरणाद्धा के चरम समय तक की जाने वाली किट्टियों के विषय में जानना चाहिए। साथ ही यह भी समझना चाहिए कि प्रथम समय की गई किट्रियों में की जो किट्रि अबसे अल्प रस वाली है, वह भी दूसरे समय की गई किट्टियों में की सबसे अधिक रस वाली किट्टि की अपेक्षा , अनन्तगुण अधिक रस वाली है और दूसरे समय की गई किट्टियों में की जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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