Book Title: Panchsangraha Part 09
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 208
________________ उपशमनादि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट ८ १७६ में प्राप्त होते हैं और उसकी अपेक्षा स्वाभाविक रीति से उदय में आने वाले दलिक असंख्यातगुण होते हैं। इस प्रकार से नपुंसकवेद का उपशम होने के बाद हजारों स्थितिघात प्रमाण काल में इसी क्रम से स्त्रीवेद का उपशम करता है। परन्तु स्त्रीवेद की उपशमन क्रिया के काल का संख्यातवां भाग जाने के बाद ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीन घातिकर्मों का स्थितिबंध संख्यातवर्ष प्रमाण करता है। तत्पश्चात् इन तीनों कर्मों का नया-नया स्थितिबंध पूर्वपूर्व के स्थितिबंध की अपेक्षा संख्यातगुण हीन-हीन यानि संख्यातवें भाग प्रमाण करता है और अभी तक केवलज्ञानावरण के बिना ज्ञानावरणचतुष्क और केवलदर्शनावरण के बिना तीन दर्शनावरण इन सात प्रकृतियों का जघन्य द्विस्थानक रस बाँधता था, परन्तु उसके बदले जिस समय से ज्ञानावरणादि तीन कर्मों का संख्यात वर्ष प्रमाण स्थितिबन्ध होता है, उस समय से एकस्थानक रसबन्ध होता है । उसके बाद हजारों स्थितिघात व्यतीत होने पर पूर्ण रूप से स्त्रीवेद उपशमित हो जाता है। स्त्रीवेद का उपशम होने के बाद तत्काल हास्यषट्क और पुरुषवेद इन सात प्रकृतियों की नपुंसकवेद की तरह एक साथ उपशम क्रिया प्रारम्भ होती है । इन सात प्रकृतियों की उपशम क्रिया के काल का एक संख्यातवां भाग जाने के बाद नाम और गोत्र इन दो कर्मों का स्थितिबन्ध संख्यात वर्ष प्रमाण और उस समय वेदनीय कर्म का स्थितिबन्ध असंख्यात वर्ष प्रमाण होता है। परन्तु वेदनीय कर्म का वह असंख्यात वर्ष प्रमाण अन्तिम स्थितिबन्ध पूर्ण होने के बाद सभी कर्मों का स्थितिबन्ध संख्यात वर्ष प्रमाण होता है और अब पूर्व-पूर्व के स्थितिवन्ध की अपेक्षा प्रत्येक कर्म का नया स्थितिबन्ध संख्यातगुण हीन-हीन अर्थात् संख्यातवें भाग प्रमाण होता है। उसके बाद हजारों स्थितिघात व्यतीत हों तब हास्यषट्क का सम्पूर्ण उपशम होता है और जिस समय हास्यषट्क का सम्पूर्ण उपशम होता है, उस समय पुरुषवेद की प्रथम स्थिति एक समय प्रमाण और द्वितीय स्थिति में समय न्यून दो आवलिका प्रमाण काल में बन्धे दलिक को छोड़कर शेष सर्व दलिक उपशमित हो जाते हैं और उस समय पुरुषवेद का चरम स्थितिबन्ध सोलह वर्ष प्रमाण होता है । पुरुषवेद को प्रथम स्थिति दो आवलिका प्रमाण बाकी हो तब द्वितीय स्थिति में से उदीरणाप्रयोग द्वारा दलिक पुरुषवेद की उदयावलिका में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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