Book Title: Panchsangraha Part 09
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 176
________________ उपशमनादि करणत्रय - प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १ संजमघाईण तओ अंतरमुदओ उ जाण दोन्हं तु । सोदयतुल्ला पढमट्ठिई ॥ ६० ॥ वेयकसायण्णयरे थीअपुमोदयकाला संखेज्जगुणा उ पुरिसवेयस्स । तस्सवि विसेसअहिओ कोहे तत्तवि जहकमसो ||६१ || ठितिखंडगबंधगद्धनिप्पत्ति | जायंति सत्त इमे ॥६२॥ मोहे ॥ ६३ ॥ एगट्ठाणाणुभागो बंधो उदीरणा य संखसमा । अणुपुब्वी संकमणं संकमणं लोहस्स असंकमो बद्ध बद्ध छसु आवलीसु उवरेणुदीरणं एइ । पंडगवेउवसमणा असंखगुणणाइ जावतं ॥६४॥ अंतरकरणेण समं अंतरकरणानंतर समए उ अंतरकरणपविट्ठो संखासंखंसमोहइयराणं । बंधादुत्तरबंधो एवं इत्थीए संखंसे ||६५|| उवसंते घाईणं बंधो सत्तण्हेव संखेज्जतमं मि संखेज्जसमा संखेज्जसमा परेण Jain Education International संखंसो । उवसंते ॥ ६६॥ नामगोयाण संखा बंधो वासा असंखिया तइए । ता सव्वाण वि संखा तत्तो संखेज्जगुणहाणी ॥ ६७ ॥ जं समए उवसंतं छक्कं उदयट्ठिई तया सेसा । पुरिसे समऊणावलिदुगेण बंध अणुवसंतं ||६८ || आगालेण समगं पडिग्गहया फिडइ पुरिसवेयस्स । सोलसवासिय बंधो चरिमो चरिमेण उदएण || ६ || तावइ कालेणं चिय पुरिसं उवसामए अवेदो तो । बंधो बत्तीससमा संजलणियराण उ सहस्सा ॥ ७० ॥ अव्यपढमसमया कोहतिगं आढवेइ उवसमिउं । तिसु पडिग्गहया एक्का उदओ य उदीरणा बंधो ॥ ७१ ॥ For Private & Personal Use Only १४७ www.jainelibrary.org

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