Book Title: Panchsangraha Part 09
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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उवट्टण ओवट्टण संकमकरणाई होंति नण्णाई । देसोवसामियस्सा जा पुव्वो
खवगो उवसमगो वा पढमकसायणि
देसोवसामगो सो
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पंचसंग्रह : ६
सव्वकम्माणं ॥ ६६ ॥
दंसणतिगस्स ।
अपुव्वकरणंतगो
साइयमाइचउद्धा
अणाइसंतीणं ।
देसुवसमणा मूलुत्तरपगईणं साइ अधुवा उ अधुवाओ ॥८॥ गोयाउयाण दोहं चउत्थ छट्ठाण होइ छ सत्तण्हं । साइयमाइ चउद्धा से साणं एगठाणस्स || ६६ ॥ उवसामणा ठिइओ उक्कोसा संकमेण तुल्लाओ । इयरा वि किन्तु अभव्वउव्वलग अपुव्वकरणेसु ॥ १०० ॥ अणुभाग परसाणं सुभाण जा पुव्व मिच्छ इयराणं । उक्को सियरं अभविय एगेंदि देससमणाए । १०१ ।। निद्धत्ति--निकाचनाकरण
देसुवसमणा तुल्ला होइ निहत्ती निकायणा नवरि । संकमणं वि निहत्तीइ नत्थि सव्वाणि इयरीए ॥ १०२ ॥ गुणसेढिपएसग्गं थोवं उवसामियं असंखगुणं । एवं निय निकाइय अहापवत्तेण ठिबंधउदीरणति विहसंक मे होंतिऽसंखगुण
संकतं ॥ १०३॥
अज्झवसाया
एवं
उवसामणमा इएसु
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जाव ||७||
कमसो ।
कमा ॥ १०४ ॥
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