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________________ १५० उवट्टण ओवट्टण संकमकरणाई होंति नण्णाई । देसोवसामियस्सा जा पुव्वो खवगो उवसमगो वा पढमकसायणि देसोवसामगो सो Jain Education International पंचसंग्रह : ६ सव्वकम्माणं ॥ ६६ ॥ दंसणतिगस्स । अपुव्वकरणंतगो साइयमाइचउद्धा अणाइसंतीणं । देसुवसमणा मूलुत्तरपगईणं साइ अधुवा उ अधुवाओ ॥८॥ गोयाउयाण दोहं चउत्थ छट्ठाण होइ छ सत्तण्हं । साइयमाइ चउद्धा से साणं एगठाणस्स || ६६ ॥ उवसामणा ठिइओ उक्कोसा संकमेण तुल्लाओ । इयरा वि किन्तु अभव्वउव्वलग अपुव्वकरणेसु ॥ १०० ॥ अणुभाग परसाणं सुभाण जा पुव्व मिच्छ इयराणं । उक्को सियरं अभविय एगेंदि देससमणाए । १०१ ।। निद्धत्ति--निकाचनाकरण देसुवसमणा तुल्ला होइ निहत्ती निकायणा नवरि । संकमणं वि निहत्तीइ नत्थि सव्वाणि इयरीए ॥ १०२ ॥ गुणसेढिपएसग्गं थोवं उवसामियं असंखगुणं । एवं निय निकाइय अहापवत्तेण ठिबंधउदीरणति विहसंक मे होंतिऽसंखगुण संकतं ॥ १०३॥ अज्झवसाया एवं उवसामणमा इएसु For Private & Personal Use Only जाव ||७|| कमसो । कमा ॥ १०४ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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