Book Title: Panchsangraha Part 09
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ६ फिट्टन्ति आवलीए सेसाए सेसयं तु पुरिससमं । एवं सेसकसाया वेयइ थिबुगेण आवलिया ॥७२।। चरिमुदयम्मि जहन्नो बंधो दुगुणो उ होइ उवसमगे। तयणंतरपगईए चउतग्गुणोण्णेसु संखगुणो ॥७३॥ लोभस्स उ पढमठिइं बिईयठिइओ उ कुणइ तिविभाग। दोसु दलणिक्नेवो तइयो पुण किट्टीवेयद्धा ॥७४॥ संताणि बज्झमाणग सरूवओ फड्डगाणि जं कुणइ । सा अस्सकण्णकरणद्धा मज्झिमा किट्टिकरणद्धा ॥७॥ अप्पुव्वविसोहीए अणुभागोणूण विभयणं किट्टि । पढमसमयंमि रसफड्डगवग्गणाणंतभाग समा ॥७६॥ सव्वजहन्नगफड्डगअणन्तगुणहाणिया उ ता रसओ। पइसमयसंखंसो आइमसमया उ जावन्तो ॥७७।। अणुसमयमसंखगुणं दलियमणन्तंसओ उ अणुभागो। सव्वेसु मन्दरसमाइयाण दलियं विसेसूणं ॥७८।। आइमसमयकयाणं मंदाईणं रसो अणन्तगुणो । सव्वुक्कस्सरसा . वि हु उवरिमसमयस्सऽणतंसे ॥७॥ किट्टिकरणद्धाए तिसु आवलियासु समयहीणासु । न पडिग्गहया दोण्हवि सट्ठाणे उवसमिति ॥८॥ लोहस्स अणुवसंतं किट्टी उदयावली य पुव्वत्तं । बायरगुणेण समगं दोण्णिवि लोभा समुवसन्ता ॥८१॥ सेसद्ध तणुरागो तावइया किट्टिओ उ पढमठिई। वज्जिय असंखभागं हिठ्ठवरिमुदीरए सेसा ॥२॥ गेण्हन्तो य मुयन्तो असंखभागं तु चरिमसमयंमि । उवसामिय बीयठिइं उवसंतं लभइ गुणठाणं ॥३॥
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