Book Title: Panchsangraha Part 09
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ६
का, पल्लं-पल्योपम, सेसाणं- शेष का, पल्लसंखसो-पल्योपम का संख्यातवां भाग।
गाथार्थ-इसी प्रकार तीस कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति वाले ज्ञानावरणादि का पल्योपम स्थितिबन्ध होता है और मोहनीय का डेढ़ पल्य । उसके बाद इसी प्रकार मोहनीय का पल्योपम स्थितिबन्ध होता है और शेष कर्मों का पल्योपम के संख्यातवें भाग प्रमाण स्थितिबन्ध होता है।
विशेषार्थ- मोहनीयकर्म का दो पल्योपम स्थितिबन्ध होने के बाद हजारों अपूर्व स्थितिबंध होने के अनन्तर तोस कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति वाले ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अंतराय कर्म का एक पल्योपम और मोहनीय का डेढ़ पल्योपम स्थितिबंध करता है। ज्ञानावरणादि का पल्योपम का स्थितिबंध होने के बाद का अन्य स्थितिबध संख्यात गूणहीन होता है। मोहनीय का तो पल्योपम के संख्यातवें भाग हीन होता है। मोहनीय का डेढ़ पल्योपम स्थितिबंध होने के बाद हजारों अन्य स्थितिबंध होने के अनन्तर मोहनीय का स्थितिबंध भी पल्योपम प्रमाण होता है और उसके बाद का मोहनीय का भी अन्य स्थितिबध संख्यातगुणहीन यानि पल्योपम के संख्यातवें भाग प्रमाण मात्र होता है । जिस समय मोहनीय का पल्योपम प्रमाण स्थितिबंध होता है, उस समय शेष कर्मों का अन्य स्थितिबंध पल्योपम के संख्यातवें भाग प्रमाण होता है । तथा
वीसगतीसगमोहाण संतयं जहकमेण संखगुणं । पल्ल असंखेज्जंसो नामगोयाण तो बंधो॥५५॥ शब्दार्थ-वीसगतीसगमोहाण-बीस और तीस कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति वालों और मोहनीय की, संत-सत्ता, जहकमेण–अनुक्रम से, संखगुणं-संख्यात गुणी, पल्ल असंखेज्जंसो-पल्योपम के असंख्यातवें भाग, नामगोयाण-जाम और गोत्र का, तो-तो, बंधो-बन्ध ।
गाथार्थ-बीस और तीस कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति वालों और मोहनीय की सत्ता अनुक्रम से संख्यातगुणी होती है और उसके बाद नाम और गोत्र कर्म का स्थितिबंध पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण होता है।
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