Book Title: Panchsangraha Part 09
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ६
हजारों स्थितिघात होने के बाद द्वीन्द्रिय की स्थितिसत्ता के तुल्य स्थिति होती है और उसके बाद उतने ही हजारों स्थितिघात होते हैं तब एकेन्द्रिय की स्थितिसत्ता के बराबर सत्ता होती है। उसके बाद पुनः हजारों स्थितिघात होने के बाद पल्योपम के संख्यातवें भाग प्रमाण स्थिति को सत्ता बाकी रहती है । यथा----
अनिवृत्तिकरण के प्रथम समय से लेकर अन्तर-अन्तर में हजारों स्थितिघात होने के बाद अनुक्रम से जो असंज्ञिपंचेन्द्रिय आदि के तुल्य स्थिति को सत्ता होती है और इस प्रकार से स्थिति घटते-घटते जब तीनों दर्शनमोहनीय की पल्योपम के संख्यातवें भाग प्रमाण स्थितिसत्ता रहती है, तब जो होता है, वह इस प्रकार है
संखेज्जा संखिज्जा भागा खण्डइ सहससो तेवि । तो मिच्छस्स असंखा संखेज्जा सम्ममीसाणं ॥४१॥
शब्दार्थ-संखेज्जा संज्जिा --संख्याता-संख्याता, भाग:-- भाग, रूण्डइ-खण्ड करता है, सहससो-हजारों, तेवि----उनके भी, तो उसके बाद, मिच्छस्स-मिथ्यात्व के, असंखा-असंख्यात, संखेज्जा---संख्यात, सम्ममीसाणं-सम्यक्त्व और मिश्र के ।
___ गाथार्थ-दर्शनमोहनीयत्रिक की पल्योपम के संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिसत्ता होने के बाद) संख्याता-संख्याता भाग खण्ड करता है-उनके भी वैसे हजारों खण्ड करता है। उसके बाद मिथ्यात्व के असंख्यात और सम्यक्त्व तथा मिश्र मोहनीय के संख्याता-संख्याता भाग प्रमाण स्थितिघात करता है। विशेषार्थ-दर्शनमोहनीयत्रिक की पल्योपम के संख्यातवें भागप्रमाण स्थिति की सत्ता जब होती है तब उस सत्तागत पल्योपम के संख्यातवें भागप्रमाण स्थिति के संख्याता भाग करके एक भाग रख शेष समस्त भागों का नाश करता है। इसी प्रकार जितनी स्थिति सत्ता में है, उसके संख्याता भाग करके एक भाग रख सबका नाश करता है।
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