________________
पाइपच्चूसो
कथा वस्तु
पुष्पचूल राजा विमल का पुत्र था । उसकी माता का नाम सुमंगला था । उसके एक बहिन थी जिसका नाम पुष्पचूला था । जब पुष्पचूल और पुष्पचूला तरुण हुए तब राजा ने योग्य जीवन साथी देखकर उनका विवाह कर दिया । पाणिग्रहण के कुछ समय पश्चात् पुष्पचूला के पति का स्वर्गवास हो गया। पुष्पचूला के शिर पर तीव्र वज्रपात-सा हुआ । राजा विमल और रानी सुमंगला उसे ससुराल से अपने महलों में ले आये । पुष्पचूला अपने माता-पिता के पास रहने लगी ।
पुष्पचूल कुसंगति में पड़कर नगर में चोरी करने लगा। उसकी बहिन भी उसके इस कार्य में सहयोग करने लगी । जब नगरवासियों को इस बात का पता लगा तब उन्होंने उसे चोरी न करने की सलाह दी । किन्तु पुष्पचूल माना नहीं। तब उन्होंने पुष्पचूल, पुष्पचूला का नाम बदलकर बंकचूल और बंकचूला कर दिया । फिर कुछ शिष्ट व्यक्ति राजा के पास आये और नगर में हो रही चोरी का जिक्र कर कहा -- राजन् ! दुःख है इसमें आपके पुत्र और पुत्री का भी हाथ है । राजा ने तत्काल बंकचूल को बुलाया और उसे नगर छोड़कर जाने का आदेश दे दिया ।
बंकचूल अपने महल में आया और वहां से प्रस्थान करने लगा। उसके साथ उसकी बहिन तथा पत्नी भी जाने को उद्यत हो गई । बंकचूल उनके साथ नगर छोड़कर रवाना हो गया । चलते-चलते वह चोरों की एक बस्ती के समीप पहुंचा और वहां विश्राम करने लगा। चोरों के मुखिया ने उसे देख लिया । उसने बंकचूल से पूछा -- तूम कौन हो ? तुम्हारे साथ ये दो स्त्रियां कौन हैं ? बंकचूल ने कहा'मैं राजा का लड़का हूं । मेरा नाम बंकचूल है। इन स्त्रियों में एक मेरी बहिन और एक पत्नी है । पिता ने चौर्य-कर्म में लिप्त होने के कारण मुझे नगर से निष्कासित कर दिया ।' यह सुनकर चौराधिपति ने उसे अपने पास रख लिया । बंकचूल उन चोरों के साथ पुन: चोरी करने लगा । कालान्तर में चोरों के मुखिया की मृत्यु हो गई। सब ने मिलकर बंकचूल को अपना नेता बना लिया ।
1
एक बार आचार्य चंद्रयश शिष्यों सहित सार्थ के साथ किसी स्थान पर चातुर्मास करने जा रहे थे । मार्ग में भयंकर वर्षा हुई। नदी, नालों में पानी भर गया । संयोगवश सार्थ का साथ छूट गया । आचार्य के सम्मुख अकल्पित स्थिति आ गई । उन्होंने परिस्थिति को देख निर्णय लिया कि अब आगे जाना असम्भव है,