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पएसीचरियं
६४. चित्र ! चार कारणों से जीव केवलिभाषित धर्म सुनने में समर्थ नहीं है- ऐसा जिनेश्वर देवों ने कहा है।
६५-६६. जो आरामगत (उद्यान में आये हुए), उपाश्रय गत और गोचरी के लिए गये हुए श्रमण को न वंदन करता है, न पूछता है तथा जो श्रमण को देखकर अपने को छिपाकर अन्य मार्ग से जाता है, वह धर्म सुनने में समर्थ नहीं है।
६७. तुम्हारा राजा प्रदेशी साधुओं के पास न आता है, न वंदन करता है तब धर्म कैसे सुनेगा?
६८-६९-७०. केशी स्वामी के इस वचन को सुनकर चित्र सारथि ने निवेदन किया- मैं आपके पास उसे लाने के लिए बहुत प्रयत्न करुंगा। यदि वह आपके पास आये तब क्या आप उसे केवलिभाषित धर्म सुनायेंगे ? चित्र के वचन सुनकर केशी स्वामी ने यह कहा
७१.चित्र ! मैं द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव को देखकर उसे धर्म सुनाऊंगा, इसमें संशय नहीं है।
७२. केशी स्वामी के इस वचन को सुनकर चित्र वंदन कर प्रसन्नमना अपने स्थान पर आ गया।
द्वितीय सर्ग समाप्त