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५०. केशी स्वामी को निवेदन कर और उन्हें वंदन कर चित्र प्रसन्नमन से श्वेताम्बिका नगरी चला गया।
___५१. कुछ दिन श्रावस्ती में रहकर केशी स्वामी ने प्रसन्नमन से विहार कर दिया।
५२. ग्रामों में विहार करते हुए जनतारक केशी स्वामी शीघ्र ही शिष्यों सहित श्वेताम्बिका नगरी आये।
५३. वे श्वेताम्बका नगरी के बाहर उद्यान में आकर द्वारपाल से आज्ञा लेकर वहां ठहर गये।
५४. उनको आया हुआ देखकर द्वारपाल ने उन्हें भक्तिपूर्वक वंदन, नमस्कार
किया।
५५. उनका परिचय पाकर वह प्रसन्नमना चित्र सारथि के पास आया और निवेदन किया।
५६. आप जिसके दर्शन चाहते थे वे केशी नाम से प्रसिद्ध मुनि यहां आये है।
५७. द्वारपाल से केशी स्वामी का आगमन सुनकर चित्र प्रसन्न हो वहां शीघ्र आया।
५८. उसने भक्तिपूर्वक वंदन कर कहा- आपके दर्शन पाकर मैं धन्य हो गया हूँ।
५९. केशी स्वामी का आगमन सुनकर जनता अहंपूर्विका वहां शीघ्र आने लगी।
६०. जनतारक केशी स्वामी ने उस विशाल परिषद् को पापमलनाशक प्रवचन सुनाया।
६१. प्रवचन सुनकर मनुष्य अपने घर चले गये। चित्र ने उनके पास आकर निवेदन किया
६२-६३. मेरा राजा प्रदेशी अधार्मिक है । यदि आप उसे यह धर्म सुनायें तो बहुत लाभ होगा- ऐसा मन में विश्वास है । चित्र का वचन सुनकर केशी स्वामी ने यह कहा