Book Title: Paia Pacchuso
Author(s): Vimalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 156
________________ मियापुत्तचरियं १३६ २६. जब मनि गौतम रानी के साथ इस प्रकार बात कर रहे थे उस समय ज्येष्ठसुत मृगापुत्र के भोजन का समय हो गया। २७. रानी ने मुनि गौतम से कहा - तुम यहां ठहरो । मैं शीघ्र मृगापुत्र को दिखाती हूं, जिसे देखने के लिए तुम यहां आये हो। २८-२९. इस प्रकार कहकर अंदर जाकर, वस्त्रबदल कर वह रसोई घर में गई और उसके (ज्येष्ठ पुत्र के) लिए भोजन लिया। भोजन को गाडी में रखकर वह मुनि गौतम के पास आई और बोली - मेरे ज्येष्ठ पुत्र को देखने के लिए मेरे साथ आओ। ३०. मुनि गौतम रानी के साथ मृगापुत्र को देखने के लिए गये। भूमिगृह में आकर रानी ने मृगापुत्र को खाने के लिए भोजन दिया। ३१. मृगापुत्र आसक्त चित्त से उस भोजन को खाता है । वह खाया हुआ भोजन शीघ्र ही रक्त और पीप में परिणत हो जाता है । ३२. उसके बाद वह मृगापुत्र रक्त और पीप का वमन करता है और पुन: उस रक्त और पीप को खाता है। ३३. उसकी इस स्थिति को देखकर मुनि गौतम ने मन में चिंतन कियाइसने पूर्व भव में ऐसा कौन - सा कार्य किया है जिसका फल पा रहा है। ३४. जो जैसा कर्म करता है वह यहां वैसा ही फल पाता है । मनुष्य संसार में सुख और दुःख सदा अपने कर्मों के अनुसार पाता है। ३५. इस प्रकार मृगापुत्र को देखकर वे भगवान् के पास आये और वंदन कर बोले - मैंने उस मृगापुत्र को देख लिया है। ३६-३७. भंते ! वह अभी नरकतुल्य प्रचुर पीडा को भोग रहा है। इस बालक ने पूर्व भव में ऐसा क्या कार्य किया है जिससे घोर वेदना भोग रहा है? क्योंकि बिना बीज के फल नहीं होता है । मुनि गौतम का प्रश्न सुनकर भगवान् महावीर उसके पूर्व भव का वर्णन करते हैं। द्वितीय सर्ग समाप्त

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