Book Title: Paia Pacchuso
Author(s): Vimalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 159
________________ १३९ जया एगो वि वाही य, सरीरम्मि हु जायए हुवेइ माणवाण य समुप्पज्जंति विग्गहे । हुवेइ पुरिसाण य तया वि विडला पीला, बहुसंखा जया रोआ, तया पीलाअ का वत्ता, सोलसरो अगत्थो एगाइरटुकूडो य, सो, अणुहवी अ अट्टज्झाणपरो पाइयपच्चूसो जया कये पयत्ते वि, एगो विण तया विसण्णचित्तो सो, `विमणा ता पप्प वि पउरं पीलं, एगाई खेडणायगो सत्तो पुव्वव्व भोएसु, रज्जे अंतेउरम्मि य भोत्तूण मणुयाउं सो, काऊण मरणं अंते, पढमे 1188 11 कारेइ घोसणं इत्थं, णिअ- अणुअरेहि । जो को वि तस्स रोएसुं, एगं वि उवसामइ ॥ १५ ॥ भुंजेऊण ठिझं ठिझं तत्थ, एगं पच्छा पुरे समुप्पन्नो, (७) समर्थ: (पक्का सहा पाइयलच्छीनाममाला ५२) । 1 ॥१२॥ देइ से परं वित्तं, इट्ठकूडओ । घोसणं सुणिऊणं णं, चिगिच्छं कुणिउं य से दक्खा विज्जा समायांति, परंण को वि पक्कलो तेसु रोएसु एगं वि, तयाणि पुव्वकयाण कम्माण, फलं भुंजेइ कुणेइ जारिसं कम्म, फलं ॥१३॥ वेणं । तया सो (जुग्गं) संपयं लहेइ तारिसं । उवसामिउं ॥ १७ ॥ (तीहिं विसेस) 1 उवसामइ सहेइ य ॥ १८ ॥ । ॥१९॥ अड्डाइज्जस तया 1 णिरये गओ ॥ २० ॥ य सागरोवमं । हत्थिणाउरणामगे ॥२१॥ जो तुम य दिट्ठो य, मियापुत्तो य संपयं 1 एगाइरट्ठकूडस्स, जीवो अस्थि गोयमो ! ॥२२॥ स ॥१६ ॥ 1 ॥२३॥

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