Book Title: Paia Pacchuso
Author(s): Vimalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 164
________________ मियापुत्तचरियं १४४ ३६. तत्पश्चात् वह चतुष्पाद प्राणियों में, उरसर्प, भुजसर्प, खेचर में उत्पन्न होगा। ३७. फिर वह चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होगा। ३८-३९. तत्पश्चात् वनस्पतिकाय में उत्पन्न होगा। उसके बाद पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय और वायुकाय में लाखों भव करके सुप्रतिष्ठपुर नगर में बैल रूप में उत्पन्न होगा। ४०. वहां मृत्यु प्राप्त कर वह पुन: उसी नगर में किसी श्रेष्ठी-कुल में पुत्ररूप में उत्पन्न होगा। ४१. साधुओं की संगति पाकर वह धर्म का श्रवण करेगा और वैराग्यभाव प्राप्त कर प्रव्रज्या ग्रहण करेगा। ४२-४३. शुद्ध भावों से प्रव्रज्या का बहुत समय तक पालन कर, अंत में आलोचना कर मृत्यु को प्राप्त कर वह सौधर्मकल्प नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा। ४४. वहां से च्यवन कर वह महाविदेहवास में पुरुषरूप में उत्पन्न होगा। ४५. वहां साधुओं की संगति पाकर उनसे बोधि (सम्यक्त्व) प्राप्त करेगा। तत्पश्चात् गृहवास को छोड़ कर वह साधु बनेगा। . ४६. घाति कर्मों (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अंतराय) का नाश करके वह केवली होगा। ४७. वह अनेक वर्षों तक विहरण करेगा। अंत में अनशन कर वह सिद्ध (समस्त कर्मों से मुक्त) होगा। तृतीय सर्ग समाप्त विमलमुनिविरचित पद्यप्रबंधमृगापुत्रचरित्र समाप्त

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