Book Title: Paia Pacchuso
Author(s): Vimalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 139
________________ पाइपच्चूसो पालिय सुद्धभावेहि दिक्खं, अंते लहिस्सइ विसिट्ठणाणं । केवलणाणकेवलदंसणं, कररेहा व्व पेच्छिहिइ लोयं ॥१३॥ जीवा भवाण्णवा तारेंतो, भुवणम्मि बहुवरिसपेरंतं । विहरिस्सइ अंते काऊणं, अणसणं सो लहेहि मुत्तिं ॥ १४ ॥ १९९ इह चउत्थो सग्गो समत्तो इझ विमलमुणिणा विरइयं पज्जप्पबंधं पएसीचरियं समत्तं

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