Book Title: Paia Pacchuso
Author(s): Vimalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 148
________________ मियापुत्तचरियं १२८ - १२. जन्मांध और जन्मांधरूप उस पुत्र को देखकर वह सुकुमाल रानी डर गई। उसका शरीर कांपने लगा। १३. तब उसने धायमाता को बुलाकर इस प्रकार कहा-तुम इसे शीघ्र लेकर अकूरड़ी पर फेंक दो। १४. धायमाता उसे लेकर राजा के पास आई और नमस्कार कर गद्गद्मन से उसे इस प्रकार निवेदन किया __ १५-१६. नौ महीनों के बाद तुम्हारी रानी ने यह पुत्र उत्पन्न किया है । इसके रूप को देखकर उसने मुझे यह आदेश दिया है कि इसको कहीं भी अकूरड़ी पर फेंक दो । अत: मैं तुम्हारा आदेश लेने के लिए यहां आई हूँ। १७. धायमाता के वचन को सुनकर राजा तत्काल चिरकाल के बाद रानी के पास आया और स्नेहपूर्वक उसे कहा १८-१९-२०. यह तुम्हारा प्रथम पुत्र है अत: इसे मत फेंको । क्योंकि संसार में यह लोकोक्ति प्रसिद्ध है कि जिस स्त्री के प्रथम पुत्र मर जाता है उसके अन्य पुत्र भी प्राय: जीवित नहीं रहते हैं। इसीलिए मनुष्य ज्येष्ठ पुत्र की रक्षा करते हैं ।अत: तुम तलगृह में रख कर अभी इसका पालन करो। क्योंकि सुत का पालन करना माता का प्रथम कर्तव्य है। २१. राजा की वाणी सुनकर रानी ने बिना मन उसे स्वीकार कर लिया। क्योंकि भविष्य के हित को देखकर कौन अपना हित नहीं चाहता है। २२. तलगृह में रखकर वह उसका गुप्त रूप से पालन करने लगी। उसके विषय में कोई भी व्यक्ति कुछ भी नहीं जानता था। २३. उस बालक के शरीर में अंदर और बाहर आठ-आठ नाड़ियां थीं। दो कर्ण-छिद्रो में और दो नयन छिद्रों में थीं।

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