Book Title: Paia Pacchuso
Author(s): Vimalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 150
________________ मियापुत्तचरियं १३० २४. दो नासिका-छिद्रों में और दो हृदय की धमनियों में थीं । गर्भ से ही उसके शरीर में भस्मनामक व्याधि थी। २५. वह जो खाता था वह शीघ्र पीप और रक्त में परिणत हो जाता था ।वह पीप और रुधिर नाड़ियों से बार-बार बहता था। २६. भस्म व्याधि से पीडित वह उस पीप और रुधिर को खा जाता था। कर्मों की विचित्र स्थिति है । कोई भी उसे नहीं जानता है। २७. इस प्रकार का वर्तन करता हुआ वह अपने कृत कर्मों का फल भोगने लगा। मनुष्य सुख और दुःख अपने किये हुए कर्मों के अनुसार प्राप्त करता है। प्रथम सर्ग समाप्त

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