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पएसीचरियं
कथावस्तु
एक बार श्रमण भगवान् महावीर का शिष्यों सहित आमलकल्पा नगरी में आगमन हुआ । जनता भगवान् के दर्शनार्थ गई । राजा श्रेणिक भी अपनी रानी सहित भगवान् के दर्शनार्थ गया। उस समय सुधर्मा सभा में देव परिवार सहित स्थित सूर्याभदेव ने अवधिज्ञान से भगवान् का आमलकल्पा नगरी में आगमन जाना । उसने वहीं से भगवान् को वंदन किया। तत्पश्चात् उसने सोचा- मुझे भगवान् के साक्षात् दर्शन करने चाहिए। वह देव परिकर सहित भगवान् के पास आया । भगवान् को वंदन कर उसने निम्नलिखित प्रश्न पूछे
(१) मैं भवसिद्धिक हूं या अभवसिद्धिक
(२) मैं सम्यग् दृष्टि हूं या मिथ्यादृष्टि (३) मैं अपरित्तसंसारी हूं या परित्तसंसारी (४) मैं सुलभबोधि हूं या दुलर्भबोधि
पाइयपच्चूसो
(५) मैं आराधक हूं या विराधक (६) मैं चरम हूं या अचरम
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भगवान् ने उसके प्रश्नों के उत्तर दिये । तत्पश्चात् सूर्याभदेव ने कहा- मैं आपके साधुओं के सम्मुख बत्तीस प्रकार का नाटक दिखाना चाहता हूँ | भगवान् कुछ नहीं बाले । उसने दो-तीन बार अपनी बात दोहराई । भगवान् मौन रहे । तब 'मौनं सम्मतिलक्षणं' ऐसा सोचकर उसने नाटक दिखाया। उसके जाने के बाद गणधर गौतम ने भगवान् से पूछा- भंते ! यह सूर्याभदेव ! पूर्व भव में कौन था ? इसने किसके समीप आर्यधर्म का श्रवण किया था ? अथवा इसने क्या किया, क्या दिया, क्या खाया, क्या आचरण किया जिसके प्रभाव से यह देवर्द्धि प्राप्त की है ? तब भगवान् महावीर ने सूर्याभदेव के पूर्वभव संबंधित वृत्तान्त बताते हुए राजा प्रदेशी के जीवन का वर्णन किया। उसे सुनकर गणधर गौतम ने पुन: पूछा- यह सूर्याभदेव देवभव संबंधित आयुष्य को पूर्ण कर कहां उत्पन्न होगा ? तब भगवान् ने उसके आगामी भव का वर्णन करते हुए कहा- यह देवलोक से च्यवन कर, महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होगा ।