Book Title: Paia Pacchuso
Author(s): Vimalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 99
________________ ७९ बीओ सग्गो 1 । 1 114 11 अहेसि - भारहे वासे, एगो जणवयों पुरा केयइ-अद्धणामो हु, समिद्धो त्थिमिओ इर 112 11 तस्सि जणवये आसि, सेयंबियााभिहा पुरी । अहेसि णिवई तत्थ, पएसीणामविस्सुओ ॥२॥ आसि अहम्मिओ सो य, पयापीलणकारओ । रयो णत्थियवायम्मि, साहूसंगविवज्जिओ ॥३॥ सारही चित्तणामो हु, हुवीअ तस्स धम्मिओ पयाणं पच्चयट्ठाणो, रज्जधुराविचितओ ॥४ ॥ आहूय एगया तं य, साहेइ पएसी णिवो ऊण पाहुडं एअं, सावत्थि णयरिं वय' देज्जा पाहुडिअं एअं, मे मित्तस्स जियारिणो जो अत्थि णिवई तत्थ, पुच्छेज्जा कुसलं यतं णिद्देसं पडिसोऊण, पट्ठाइ सारही तओ आगच्छेइ सो दुत्ति, सावत्थि णयरिं तया रायसहाअ गंतूणं, पणमेइ णिवं तया दाऊण पाहुडं सो य, पुच्छेइ कुसलं णिवं घेतूण पाहुडं भूवो, चित्तं सक्कारिऊण य णि अगपि मित्तस्स, पुच्छेइ कुसलं तया साहेइ णिवई चित्तं कइवाह दिणा तुमं वसिऊण सुहं अत्थ, गच्छेज्जा स-पुरिं तओ भूवस्स कहणं चित्तो, मण्णिऊण वसेइ य रायमग्गद्विअं ठाणं, देइ मणोहरं णिवो ॥ ११ ॥ । ॥६॥ 1 ॥७ ॥ 1 112 11 1 1 (१) अनुष्टुप् छंद । (३) समृद्ध:- धन धान्यादि से परिपूर्ण । पाइयपच्चूसो 118 11 । ॥१० ॥ (५) वज । (७) कतिपया: (डाह वौ कतिपये- प्रा. व्या. ८ । १ । २५०) । (२) आसीत् । (४) स्तिमितः - स्वचक्र और परचक्र के उपद्रवों से रहित । (६) जितशत्रवे ।

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