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पएसीचरियं
द्वितीय सर्ग
१. प्राचीन काल में भारतवर्ष में केतकीअर्द्ध नामक एक समृद्ध (धन-धन्यादि से पूर्ण) और स्तिमित (स्वचक्र और परचक्र के उपद्रवों से रहित) जनपद था।
२. उस जनपद में श्वेताम्बिका नामक एक नगरी थी । प्रदेशी वहां का राजा
था।
३. वह राजा अधार्मिक, प्रजा को पीडा देने वाला, नास्तिकवाद में रत तथा साधुओं की संगति नहीं करने वाला था।
४. उसके सारथि का नाम चित्र था । वह धार्मिक, प्रजा का विश्वासपात्र तथा राज्य की चिंता करने वाला था।
५. एक बार राजा प्रदेशी ने उसको बुलाकर कहा- इस भेंट को लेकर तुम श्रावस्ती नगरी जाओ।
६. मेरे मित्र जितशत्रु को, जो वहां का राजा है, उसे यह भेंट दे देना और उसे कुशल पूछना।
७. निर्देश स्वीकार कर सारथि वहां से रवाना हुआ। वह शीघ्र ही श्रावस्ती नगरी आ गया।
८. राजसभा में जाकर उसने राजा को प्रणाम किया और भेंट देकर राजा से कुशल पूछा।
९. भेंट ग्रहण कर राजा जितशत्रु ने चित्र का सत्कार किया और उससे अपने प्रिय मित्र के कुशल समाचार पूछे।
१०. राजा ने चित्र को कहा- तुम कुछ दिन यहां सुखपूर्वक रहकर फिर अपने नगर जाना।
११. राजा के कथन को स्वीकार कर चित्र वहीं ठहर गया। राजा ने उसे .. मार्गस्थित एक सुंदर स्थान दिया।