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बंकचूलचरियं
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११. उस राज्य से प्रस्थान कर, कुछ देर विश्राम करने के लिए हम सब अभी यहां ठहर गए । ठहरने का अन्य कोई हेतु नहीं है ।
१२. बंकचूल की वाणी सुनकर उसने (चोरों के स्वामी ने ) मन में सोचाइस चतुर व्यक्ति को जो भी आश्रय देगा उसका कार्य निश्चित ही बढ़ेगा ।
१३. उसने स्नेहपूर्वक बंकचूल से कहा- तुम अन्यत्र कहीं मत जाओ । तुम यहां निर्भय होकर रहो । हमें कुछ भी बाधा नहीं है ।
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१४. हमारा कार्य भी चोरी करना है और तुम्हारा कार्य भी चोरी | हमारे कार्य में समानता है । समान कार्य करने वालों में द्वन्द नहीं होता ।
१५. चौराधिपति की यह बात सुनकर बंकचूल का मन प्रसन्न हुआ । उसने सोचा- मैं अन्यत्र अभी कहां जावूंगा ? मेरा कोई आलंबन नहीं है । अत: मेरे लिए यहीं रहना श्रेयस्कर है।
१६. उसका आभार मानकर बंकचूल वहीं रहने लगा। इस प्रकार उन दोनों के मन में प्रसन्नता हुई ।
१७. राजा ने जिस कारण से उसे देश से बाहर निकाला था वह पुन: उनकी संगति पाकर दक्षता से चोरी आदि करने लगा ।
१८. जब तक दुष्कर्मों का अंत नहीं होता तब तक मनुष्य सज्जनों की संगति प्राप्त नहीं कर सकता । अतः सत्य कहा गया है कि सज्जनों की संगति सद्भाग्य मनुष्य को प्राप्त होती है ।
१९. उन चोरों की संगति पाकर वह उनके कार्य को बढ़ाने लगा । उसकी दक्षता देखकर चोरों का स्वामी मन में प्रसन्न हुआ ।
२० जब चौराधिपति की मृत्यु हो गई तब शोकतप्त सभी चौरों ने मिल कर कल को सब प्रकार से योग्य जानकर अपना नेता बना लिया ।
चतुर्थ सर्ग समाप्त