Book Title: Paia Pacchuso
Author(s): Vimalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 78
________________ बंकचूलचरियं २५. ऐसा सोचकर नख से अपने शरीर को क्षत-विक्षत बना कर और अपने कपड़ों को फाड़कर वह इस प्रकार उच्चस्वर से आवाज करने लगी २६. द्वारपाल ! तुम अभी क्या कर रहे हो? देखो मेरे महल में कौन आ गया? रानी के इस प्रकार का शब्द सुनकर वह (द्वारपाल) दौड़ता हुआ शीघ्र वहां आया। २७-२८. चोर को पकड़कर उसके हाथ में बंधन (हथकड़ी) डाल कर जब वह बाहर जाने लगा तब राजा ने उसे संकेत किया इसको गाढ़ बन्धन मत देना। सुबह मेरे सम्मुख इसको लाना । इस प्रकार राजा का संकेत पाकर वह कर्तव्यदक्ष द्वारपाल चला गया। २९. जब रानी चोर के साथ बात कर रही थी तब अचानक राजा वहां आ गया। उसने विस्मित होकर गुप्तरूप से सब बातें सुनीं। ३०. राजा ने रानी के कृत कार्यों को विशेष रूप से अपनी आंखों से देखा था। अत: उसका मन इसका शीघ्र ही उचित न्याय करने का इच्छुक था। ३१. दूसरे दिन जब द्वारपाल चौर को लेकर आया तब राजा ने चौर को पूछा- तुमने रात्रि में रानी के साथ क्या किया? ३२. राजा की वाणी सुनकर चौर ने समस्त घटना यथार्थ बता दी । उसके स्पष्ट वचन सुनकर राजा ने पुन: उससे यह कहा- ... ३३. मेरे महल में जाना सरल नहीं है। उसमें रानी के पास जाना तो मनुष्यों के लिए सदा कठिन है । तुम वहां गए अत: साहसी हो। ३४. मैं तुम्हारे इस साहस को देखकर तुम्हें रानी प्रदान करता हूं । राजा की बात सुनकर चोर ने तत्काल इस प्रकार कहा ३५. राजन् ! आपकी पत्नी मेरी माता के समान है । अत: मैं उसे कभी ग्रहण नहीं कर सकता। आप पुन: ऐसा न कहें। ३६-३७. उसकी बात सुनकर राजा ने बात बदल कर कहा-तुमने कल रानी के साथ अभद्र व्यवहार किया था, अत: या तो रानी को स्वीकार करो या मृत्यु दंड को । राजा की यह वाणी सुनकर बंकचूल ने इस प्रकार कहा

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