Book Title: Paia Pacchuso Author(s): Vimalmuni Publisher: Jain Vishva BharatiPage 25
________________ पाइयपच्चूसो हुए कहा - तुमने मेरी रानी के साथ दुर्व्यवहार किया है अत: मृत्युदण्ड देता हूं। बंकचूल ने कहा-यह मुझे स्वीकार्य है किन्तु रानी नहीं । राजा बंकचूल से प्रभावित हुआ। उसने रानी को बुलाया और मृत्युदण्ड दे दिया। तब बंकचूल राजा के चरणों में गिर पड़ा और कहा–रानी मेरी मां के समान हैं अत: इसे मृत्युदण्ड न दें । राजा ने रानी को देश से निष्कासित कर दिया और बंकचूल को पुत्ररूप में अपने पास रख लिया। बंकचूल अपनी पत्नी और बहिन को भी वहां ले आया। उसे पुन: आचार्य की स्मृति होने लगी। वह उनके दर्शनों के लिए उत्कंठित हो गया। एक बार आचार्य चंद्रयश ग्रामानुग्राम विहरण करते हुए शिष्यों सहित रण ग्राम में आये। बंकचूल को आचार्य के आगमन का पता चला। उसकी प्रसन्नता का पार नहीं रहा। वह आचार्य के दर्शनार्थ गया। उसने श्रावक के बारह व्रत स्वीकार किये । वह प्रतिदिन आचार्य की सन्निधि का लाभ उठाने लगा। एक बार शालिग्रामवासी श्रावक जिनदास आचार्य के दर्शनार्थ आया। साधर्मिकता के कारण बंकचूल की उसके साथ मित्रता हो गई। कालांतर में आचार्य चंद्रयश ने वहां से विहार कर दिया। बंकचूल धर्मजागरणा करता हुआ समय बिताने लगा। एक बार कामरूपदेश के राजा ने वहां पर आक्रमण कर दिया। राजा ने बंकचूल को सेना सहित शत्रुओं के सम्मुख भेजा। उसने कुशलतापूर्वक युद्ध किया। शत्रु सेना पराजित हो गई किन्तु शत्रुओं के वाणों से उसके शरीर में घाव हो गये । बंकचूल अपने नगर आया। राजा के मन में अत्यन्त प्रसन्नता हुई। बंकचूल के शरीर को व्रण-पूरित देखकर उसने वैद्यों को बुलाया और उसे शीघ्र स्वस्थ करने का निर्देश दिया । वैद्यों ने चिकित्सा प्रारम्भ की । किन्तु सफलता नहीं मिली। तब एक वैद्य ने कहा- राजन् ! यदि इन घावों में कौवे का मांस भर दिया जाए तो घाव भर सकते हैं । यह सुनकर बंकचूल को चौथे नियम की स्मृति हो आई। उसने कहा- मैंने पहले से ही आचार्य के समक्ष कौवे का मांस न खाने का नियम ले रखा है। राजा ने कहा- इस घावों में तो मांस भरने की बात है, खाने की नहीं। किन्तु बंकचूल इसके लिए तैयार नहीं हुआ। वह अपने नियम पर दृढ़ रहा। राजा ने उसे समझाने के लिए श्रावक जिनदास को शालिग्राम से बुलाया। उसने समस्त स्थिति का आकलन कर राजा से कहा— अन्य औषधि छोड़कर इसे धर्म रूपी औषधि दें। जिनदास ने बंकचूल के चारों ओर धार्मिक वातावरण बना दिया। अंतिम समय में उसने अनशन ग्रहण किया। शुभ भावों में मृत्यु को प्राप्त कर वह बारहवें देवलोक में उत्पन्न हुआ।Page Navigation
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