Book Title: Ogh Niryukti
Author(s): Bhadrabahuswami, Gyansagarsuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 410
________________ श्रीमती पनियुक्तिः ॥३९२॥ आर्याणां पञ्चविंशत्योषापधिनामानि । [स्वहस्तेन] सार्द्धत्रिहस्तदीर्घ:, हस्तपृथुः, स्वदेहमाननिष्पन्नो वा पार्श्वद्वयेऽपि कशाबद्धः । अणुः-स्वल्पं कञ्चुकाभ्यन्तरे ससंचारा, [उरोरुहावित्यर्थः] 'एवमेव च' कञ्चुकवत्कक्षासमीपाच्छादिका उपकक्षिका सार्द्धहस्तमाना चतुरस्रा ॥१००७॥ वेक(प्र. ग.)च्छिया उ पट्टो, कंचुयमुक्कच्छियं व छाएइ । संघाडीओ चउरो, तत्थ दुहत्था उवसयंमि ॥१००८॥ वैकक्षिका वामपार्श्वे, संघाटिका प्रच्छाद्यः, तत्थ जा संघाडी दुहत्थिया 'पिहुत्तेण सा खोमिया होइ ॥१००८।। दुण्णि तिहत्थायामा, भिक्खट्टा एग एग उच्चारे । ओसरणे चउहत्था, णिसण्ण पच्छायणी मसिणा ॥१००९॥ खंधकरणी य चउहत्थ-वित्थडा(रा) वायविहुयरकखट्ठा । खुज्जकरणी उ कीरइ, रूववईणं कुड(ड)हहे ॥१०१०॥ २संघाइमेअ(त)रा वा, सव्वोवेसो समासओ उवही । पासग बच्छ मज्झुसिरो, जं चाइण्णं तयं एयं ॥१०११॥ १. . पिहुतणे न सा खोमिया . । २.२. संघाइमे' इत्यत आरभ्य 'बुच्छामि' पर्यन्ताः गाथा: ।ki संज्ञकयती न सन्ति ।स। ॥३९२॥ JainEducation For Private & Personal use only A n nar.jainestorary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494