Book Title: Ogh Niryukti
Author(s): Bhadrabahuswami, Gyansagarsuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 456
________________ श्रीमती नियुक्तिः ॥४३८॥ आराधनायुतस्य उत्कृषतो भवाः एवं समायारि, जुजंता चरणकरणमाउत्ता । साहू खवंति कम्मं, अणेगभवसंचियमणंतं ॥११४०॥ स्पष्टो । एसा अणुग्गहत्था, फुडवियडविसुद्धवंजणाइण्णा ।। इक्कारसहिं साहि, एगणवण्णेहि सम्मत्ता ॥११४९॥ स्पष्टा । ॥ श्रीश्रीद्रोणाचार्यकृतवृत्तेः श्रीमदोघनिर्युक्त्यवचूरिः श्रीज्ञानसागरमरिकता समाप्ता छ।। श्रीमत्तपागणनभोगणभास्कराभ-श्रीदेवसुन्दरयुगोत्तमपादुकानां ।। शिष्यैजिनागमसुधाम्बुधिलीनचित्तैः, श्रीज्ञानसागरगुरूत्तमनामधेयैः ॥१॥ [वसन्ततिलका] निधिवह्निमनु१४३९मितेऽब्दे-वचूणिरेषा कृतौधनियुक्तेः । स्वपरोपकृतिकृते त-द्विवृतरुपरि स्फुटाजयतात् ॥२॥ ॥४३८॥ For Privale & Personal Use Only O Jain Education International ww.jainelibrary.org

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