Book Title: Ogh Niryukti
Author(s): Bhadrabahuswami, Gyansagarsuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 467
________________ निर्मुक्ति द्वारगाथा: ||४०|| Jain Education International ॥८६॥ पायपमज्जण णिसीहिया (प्र. बाहिं णिसीहि ) य, तिष्णि उ करे पवेसंमि । अंजलि ठाणविसोही दौंडग उवfree ॥८५॥ [ ७८२] काउसरगम ठिओ चिंते समुआणिए अईयारे । जा णिग्गमप्पवेसेा तत्थ उ दोसे मणे कुज्जा [ ७९० ] इच्छिज्ज ण इच्छिज्ज व तहवि पयओ णिमंत साहू । परिणामवसद्धीए णिज्जरा होअगहिए वि भरवयविदेहे पण्णरसवि कम्मभूमीया साह । इक्कंमि हीलियंमि सव्वे ते हीलिया हुति वेयावच्च' नियय करेह उत्तमगुणे धरं [र]ताणं । सव्वं किर पडिवाई वेयावच्च अपडिवाई पभिग्गस्स मयस्स व णासई चरण सुर्य अगुणणाए । ण हु वेयावच्च' चिय सुहोदयं ॥ ८७ ॥ [ ८१२] ॥८८॥ [ ८१३] ॥८९॥ [ ८१९] णासए कम्मं 118011 [20] लाभेण जोजयंतो जड़णो लाभंतराईयं हणइ । कुणमाणो य समाहिं सव्वसमाहिं लहई साह यावच्चे असि सहाए काउकामस्स | लाभो चैव तबस्सिस्स होई अक्षीणमणसस्म अह होई भावघासेसणा उ अप्पाणमध्पणा चेव साहू भुजिउकामो अणुसासई निज्जरट्टाए बायाली सेसनकड मि गहणंमि जीव ! गहू छलियो । एहि जह ण छलिज्जयि भुंजत रागदोसेहि ||१४|| ज अभ गणले वो सगडक्ख-वणाण जुनिओ हु'ति । इय संजममरवद्दणड-याए [साहूण] आहारो || ९५|| कडपयरच्छ्रेण भोत्तव्वं अव सीहखइएणं । एगेण अणेगेहि विवजित्ता धूममंगालं ॥९६॥ ॥९१॥ [ ८२१] ।९२।। [८२४] ॥९३॥ [ ८३१] [ ८३२ ] [ ८३३] [ ८६७ ] For Private & Personal Use Only 83 परिशिष्ट १ । ॥। ४४९ ॥ www.jainelibrary.org

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