Book Title: Ogh Niryukti
Author(s): Bhadrabahuswami, Gyansagarsuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 487
________________ अर्थ पत्र मूल ३९७ वर्ण्य पत्र ४०४ पोरायाम परिशिष्ट-२ श्रीमती गोपनियुक्तिः। ॥४६९॥ अंगुठाना पर्व पर प्रदेशिनी आंगली मुकवाथी जेटलुगोल बने तेटलुदांडी अने निषद्या सहित रजोहरण होय 'वायाविद्ध भिन्न ४०५ अंगुष्ठपर्व अर्थ स्निग्धवर्णोपेतं क्वचिनिम्नं क्वचिदुन्नतं यत् पात्र तत् अकालेनैव शुष्कं संकुचित वलिभृतम् [त्रांसुथयेलं राजि[तरड]युक्त सच्छिद्रं वा पात्रं चित्रल' अप्रतिष्ठताधोनागवत् पात्र वंशग्रथितः समतलकः विस्तीर्ण शकनिपुरीषः दवरकेन त्रीणि वेष्टनानि दचो यत्र पाशित शबल ३९८ ३९८ पोर स्थान तुयदृण संकोचन करण्डकः कायोत्सगः शयनं जानु-संदंशकादेः [हींचणना सांधाने वालवा] माथाना पाछला भागमा आवेल स्थलविशेष ओठनी लाईनना बराबर पाछला भागमा ते स्थान छे. ४०२ ४०३ ४०४ कृकाटिका शकुनिपरिहारः 'तिपासिय ॥४६९॥ Jain Education International For Privale & Personal use only www.jainelibrary.org

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