Book Title: Ogh Niryukti
Author(s): Bhadrabahuswami, Gyansagarsuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 468
________________ ओ नियुक्ति उद्धारगाथाः । ॥४५०॥ Jain Education Ind असुरसुर अचत्रचत्र' अदुअमविलंबित्र अपरिसार्डि। मणवयणकायगुत्तो. भुजइ अह पक्खिवणसोहि ॥९७॥ [ ८६८ ] अनंत भोक्खामिति वेसए भुजए य तह चैत्र । एस ससारणिविट्ठो ससारओ उडिओ साहू || ९८ ।। [ ८७३ ] हियाहारा मियाहारा अप्पाहारा अ जे गरा । ण ते विज्जा तिगिच्छति अप्पाण' ते तिमिच्छा ||१९|| [ ८८०] वेण वेयावच्चे इरिट्टाए अ संमट्टाए । तह पाणचित्ती[बत्ति]याए हट्टं पुण धम्मचिंताए ॥ १०० ॥ [ ८८२ ] आर्यके उवसग्गे तितिक्खया बंभचेरगुती [ ए ] । पाणिदया तबहेउ सरीर - कुच्छेअनडाए ||१०१ ।। विगियिं विद्दित्तं अइरेगे भत्तपाण भोक्तव्यं । विहिमदिये विभुत्ते इत्थ य चउरो भवे भंगा कागसीयालक्खवं दविअरस साओ पराम। एमो उभवे अfast जगद्दिय भोअणंमि [८८२ ] || १ : २॥ [ ८९९ ] [भुजओ य] विही १०३ ॥ । [ ९०१] जह गहियं तहणीय गहण भोजणे विहो गमो उवकोसमणुक्कोस समकयग्स' तु भुजिज्जा ॥ १०४ ॥ [ ९०४ ] असिया अंत आसणे मज्झि दुरि भावे य (व. तह य दूरे य) । तिष्णव अणहिआसी अंता छच्छच्च बाहिर ।।१५।। [९५४] एमेजय पासवणे वारस चडवीसियांच पामिना कालस्य वितिष्णि भवे अह सूरो अत्थमुवयाइ ॥१०६॥ [ ९०५ ] कणगाभा ही कल' तिपंच सत्ते [वि] गिम्हि सिसिरासे । उक्काउ सरेहागा रंहारहिओ भवे कणगी तो) ॥१०७॥ [ ९२२] For Private & Personal Use Only ॥ परिशिष्ट १ । ॥४५०॥ v.jainelibrary.org

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