Book Title: Ogh Niryukti
Author(s): Bhadrabahuswami, Gyansagarsuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 436
________________ श्रीमती मोषनिर्युक्तिः ॥४१८॥ Jain Education in योगाः संयमात्मकाः तत्साधर्नाथम् ॥ १.८१|| उग्गमउपायणासुद्धं, एसणादोसवज्जियं । as arre भिक्खू, अप्पदुट्टो अमुच्छिओ ॥१०८२॥ अप्रद्विष्टोऽमूच्छितः सन् ||१०८२|| उग्गम उप्पायणासुद्धं, एसणादोसवज्जियं । वर्हि धारए भिक्खू, सदा अज्झत्थसोहिए || १०८३॥ अध्यात्मशुद्धया हेतुभूतया || १०८३ || अज्झत्थविसोहीए, उaगरणं बाहिरं परिहरंतो । अपरिग्गहीत्ति भणिओ, जिणेहिं तेलुक्कदंसीहि ॥१०८४ ॥ अध्यात्मविशुद्धया बाह्यमुपकरणं 'परि'० प्रतिसेवमानोऽपरिग्रहो भणितो जिनैः ||१०८४|| अत्राह - बोटिक - पक्षपाती, यद्युपकरणसहिता अपि निर्ग्रन्था एवं तहिं गृहिणोऽपि निर्ग्रन्थाः, यतस्तेऽपि सोपकरणा वर्त्तन्ते ? उच्यते—– अज्झष्पविसोहीए, जीवणिकाहिं संथड़े लोए । देसियमहिंसगत्तं, जिणेर्हि तेलोक्कदंसीहिं ॥१०८५॥ For Private & Personal Use Only उपधिधारणप्रयोजनानि । ॥४१८॥ ow.jainelibrary.org

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