Book Title: Ogh Niryukti
Author(s): Bhadrabahuswami, Gyansagarsuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 447
________________ लोकोत्तरानायतनानि । श्रीमती धनियुक्तिः ॥४२९॥ णाणस्स दंसणस्स य, चरणस्स य जत्थ होइ उवघातो । वज्जेजऽवज्जभीरू, अणाययणवज्जओ खिप्पं ॥१११६॥ अनायतनवर्जकः क्षिप्रम् ॥१११६॥ जत्थ साहम्मिया बहब, भिण्णचित्ता अणारिया । मूलगुणपडिसेवी, अणायतणं तं वियाणाहि ॥१११७॥ विशेषतोऽनायतनमाह-मूलगुणाः-प्राणातिपातादयस्तान् प्रतिसेविनः, ते यत्र निवसन्ति तदनायतनम् ॥१११७।। जत्थ साहम्मिया बहवे, भिण्णचित्ता अणारिया । उत्तरगुणपडिसेवी, अणायतणं तं वियाणाहि ॥१११८॥ उत्तरगुणाः । पिण्डविशुद्धथादयस्तत्प्रतिसेविनो ये ॥१११८॥ जत्थ साहम्मिया बहवे, भिण्णचित्ता अणारिया । लिंगवेसपडिच्छण्णा, अणायतणं तं वियाणांहि ॥१११९॥ लिङ्गवेषमात्रेण प्रतिच्छन्ना बाह्यतोऽभ्यन्तरतश्च पुनर्मूलोत्तरगुणसेविनः ॥१११९॥ अधुनायतनमाह ॥४२९॥ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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