________________ न 62 नीतिवाक्यामृतम् कूत्या--यज्ञ अनुष्ठान आदि के विधिवत् सम्पन्न न होने से उस के द्वारा उत्पन्न, कर्ता के लिये ही घातक व्यक्ति या विनाशकारी वायु-के समान हैं। कृत्या को वश में करने का उपायअनुवृत्तिरभयं त्यागः सत्कृतिश्च कृत्यानां वशोपायाः // 165 / / इन उपयुक्त प्रकार की कृत्याओं को वश में करने के उपाय हैं-उनकी इच्छानुसार कार्य कर देना, उनको अभय दान देना, अर्थदान देना, पुनः उनका सत्कार करना अर्थात् नोकरी आदि दे देना। . .. राजा की सामान्यनीतिक्षयलोभविरागकारणानि प्रकृतीनां न कुर्यात् // 165 // राजा को चाहिए कि वह अपनी प्रकृति मन्त्री सेनापति आदि अथवा सांधारण प्रजा के विनाश, लोभ और वैराग्य का हेतु न बने अथात् प्रजा में इन बातों को न पैदा होने दे।) प्रजा के असन्तोष की महत्तासर्बकोपेभ्यः प्रकृतिकोपो गरीयान् / / 168 // प्रकृति प्रजा अथवा अमात्यादि का कोप सब कोपों से बढ़कर है। दुर्यों के योग्य कार्य(अचिकित्स्य-दोषदुष्टान् खनिदुर्गसेतुबन्धाकरकर्मान्तरेषु क्लेशयेत् / / 167 ) * जिनके दोष किसी प्रकार दूर ही न किये जा सकते हों ऐसे दुष्टों को खाई, किला, पुल बीच आदि के कार्यों में लगाकर पीडित करे। गोष्ठी के अयोग्य व्यक्ति(अपराध्यरपराधकैश्च सह गोष्टीं न कुर्यात् / / 168 // अपराधी और अपराध करानेवालों के साथ उठना-बैठना आदि छोड़ दे / दृष्टान्त(ते हि गृहप्रविष्टसर्पवत् सर्वव्यसनानामागमनद्वारम् / / 166 / / ) ऐसे व्यक्ति घर में प्रविष्ट सपं की भांति समस्त प्रकार के दुःखों के लिये आगमन-द्वार होते हैं। किसके आगे न मावेन कस्यापि क्रुद्धस्य पुरतस्तिष्ठेत् // 10 // किसी भी क्रोधी के सामने न आवे /