Book Title: Nitivakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Ramchandra Malviya
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

Previous | Next

Page 187
________________ 274 . नीतिवाक्यामृतम् बाणों में वह शक्ति नहीं होती जो बुद्धिमानों की बुद्धि में / - (दृष्टेऽप्यर्थे सम्भवन्त्यपराद्धेषवो धनुष्मन्तोऽदृष्टमप्यर्थं साधु साधयति प्रज्ञावान् / / 6 / / ) धनुर्धारी दृष्ट लक्ष्य पर भी कभी निशाने से चूक जाते हैं, किन्तु बुद्धिमान् पुरुष अप्रत्यक्ष कार्य को भी भली प्रकार सिद्ध कर लेते हैं। . श्रूयते हि किल दूरस्थोऽपि माधवपिता कामन्दकीयप्रयोगेण माधवाय मालतीं साधयाभास / / 7 / / सुना जाता है कि माधव के पिता ने दूर होने पर भी कामन्दकी के माध्यम से माधव के लिये मालती को प्राप्त कर लिया था / (प्रज्ञा ह्यमोघं शत्रं कुशलबुद्धोनाम् // 8 // ) चतुर पुरुषों के लिये बुद्धि बल अमोघ बन है। प्रज्ञाहताः कुलिशहता इव न प्रादुर्भवन्ति भूभृतः / / बुद्धि बल से परास्त किये गये राजा वज्र से मारे गये मनुष्य के समान पुनः शत्रुता अथवा विरोध के लिये समर्थ नहीं होते। (परंः स्वस्याभियोगमपश्यतो भयं, नदीमपश्यत उपानत्परित्यजनमिव / / 10) ___ शत्रुओं के द्वारा अपने ऊपर आक्रमण हुए बिना ही भयभीत हो जाना वैसी ही उपहसनीय होता है जैसा कि नदी न हो तब भी मनुष्य का अपना जूता उतारने लगना। (अतितीक्ष्णो बलवानपि शरभ इव न चिरं नन्दति // 11 // ) अत्यन्त उग्र प्रकृति का राजा बलशाली होने पर भी शरभ = अष्टापद के समान चिरकाल तक सुखी नहीं रह सकता / (शरभ नाम का जंगली पशुअत्यन्त बलशाली होता है किन्तु स्वभाव का इतना उग्र होता है कि मेघ गर्जन को हस्ति गर्जन मानकर उछल-कूद करते करते पहाड़ से नीचे गिर कर स्वयं मर जाता है / अतः राजा को बिना सोचे समझे क्रोध करके अपना हो अहित नहीं कर डालना चाहिए। प्रहरतोऽपसरतो वा समे विनाशे वरं प्रहारो यत्र नैकान्तिको विनाशः॥ 12 // ) युद्ध और संग्राम से पलायन इन दोनों में ही जब समान रूप का विनाश संभव हो तब युद्ध करना ही अच्छा है, जिसमें विनाश निश्चित नहीं अपितु विजय की भी संभावना है। ___ कुटिला हि गति देवस्य मुभूषुमपि जीवयति, जिजीविषुमपि च मारयति // 13 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214