________________ Poes नीतिवाक्यामृतम् (उत्पाटितदंष्ट्रो भुजङ्गो रखजुरिव // 41 / / ) ___ दांत उखाड़ देने पर विषधर सर्प साधारण रस्सी के समान हो जाता है अर्थात् सन्य बल आदि नष्ट कर दिये जाने पर राजा भी प्रभावहीन हो जाता है। (प्रतिहतप्रतापोऽङ्गारः संपतितोऽपि किं कुर्यात् / / 42 / / ठंडा पड़ गया हुआ अङ्गारा शरीर पर गिरकर भी क्या कर सकता है। (विद्विषां चाटुकारं न बहु मन्येत / / 43 // ) .. शत्रुओं के चाटुकार (प्रिय वचनों द्वारा प्रशंसा ) को बहुत महत्त्व नहीं देना चाहिए। (जिह्वया लिहन खड्गो मारयत्येव // 44 // जिह्वा से भी चाटने पर तलवार भार ही डालती है / तन्त्रावापौ नीतिशास्त्रम् / / 45 // ) 'तन्त्र' और 'अवाप' का नाम नीतिशास्त्र है। (स्वमण्डलपालनाभियोगस्तन्त्रम् // 46 // अपने मण्डल अथवा राज्य की सुरक्षा और पालन पोषण की योजना बनाना 'तन्त्र' है। (परमण्डलावाप्त्यभियोगोऽवापः // 47 // दूसरे के मण्डल अथवा राज्य प्राप्ति के निमित्त सन्धि विग्रहादि की योजना 'अवाप' है। (बहूनेको न गृह्णीयात् सदर्पोऽपि सर्पो व्यापाद्यत एव पिपीलि. काभिः / / 48 // प्रतिपक्षी यदि बहुत हो तो उन में अकेला न जाय क्योंकि बलिष्ठ सर्प को भी बहुत सी चींटियां मिलकर मार ही डालती हैं। अशोधितायां परभूमौ न प्रविशेन्निर्गच्छेद् वा / / 46 // बिना परीक्षण के शत्रु के प्रदेश में गमन-निर्गमन नहीं करना चाहिए / विग्रहकाले परस्मादागतं न किञ्चिदपि गृह्णीयात् गृहीत्वा न संवासयेदन्यत्र तहायादेभ्यः / श्रूयते हि निजस्वामिना सह कूटकलहं विधायावाप्तविश्वासः कृकलासो नामानीकपतिरात्मविपक्षं विरूपाक्षं जघानेति // 50 // ____ जब बैर ठना हुआ हो अथवा युद्ध चल रहा हो तब शत्रु पक्ष से आये हुए शत्रु के दायादों-पट्टीदारों को छोड़कर अन्य किसी वस्तु या.व्यक्ति को अपने वहां न आने दे न बाधय दे / ऐसा सुना जाता है कि कृकलास नाम के सेना