Book Title: Nitivakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Ramchandra Malviya
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 207
________________ 164 नीतिवाक्यामृतम् ... स्त्री और पुरुष में परस्पर प्रेम तभी तक बना रहता है जब तक कि उनमें किसी बात से परस्पर प्रतिकूलता न हो, कलह न हो और रति-संबंधी कोई छल-कपट न पैदा हो।) (तादात्विकबलस्य कुतो रणे जयः, प्राणार्थः स्त्रोषु कल्याणं वा / / 24 // ..... अस्थायी सेना से संग्राम में विजय नहीं मिलती तथा प्राण-रक्षा की दृष्टि से स्त्रियों के प्रति किये गये कल्याणकारी कार्यों से प्राण-रक्षा नहीं होती। (अर्थात् तत्काल के लिये इकट्ठा की गई सेना से संग्राम नहीं जीता जा सकता और भविष्य में यह हमारी रक्षा करेगी इस दृष्टि से स्त्रियों के संग की गई भलाई भी काम नहीं देती। * (तावत् सर्वः सर्वस्यानुनयवृत्तिपरो यावन्न भवति कृतार्थः // 25 / / तब तक सभी सब की सेवा में विनम्र भाव से लगे रहते हैं जब तक कि उनका काम नहीं निकल जाता / काम निकल जाने पर कोई-किपी को नहीं पूछता। (अशुभस्य कालहरणमेव प्रतीकारः // 26 // अशुभ बातों को दूर रखने के लिये समय का बिता देना ही एक मात्र उपाय है। पक्कान्नादिव स्वोजनादोषशान्तिरेव प्रयोजनं किं तत्र रागविरा• गाम्याम् // 27 // पका हुआ अन्न खाने से जैसे भूख मिट जाती है उसी प्रकार स्त्रियों से कामशान्ति मात्र करना. प्रयोजन रखना चाहिए उनमें आसक्ति और विरक्ति नहीं / (तृणेनापि प्रयोजनमस्ति किं पुनर्न पाणिपादवता मनुष्येण // 20 // समय पर धास तिनके से भी मनुष्य को प्रयोजन होता है तो हस्तपाद आदि से संयुक्त मनुष्य से क्यों न होगा ? अतः सब से मैत्री भाव रखना चाहिए। न कस्यापि लेखमवमन्येत, लेखप्रधाना हि राजानस्तन्मूलत्वात् सन्धिविग्रहयोः सकलस्य जगद्-व्यापारस्य च // 26 // ) __किसी सामान्य राजा के भी लेख का अनादर नहीं करना चाहिए। राजाओं के यहाँ लेख ही मुख्य होता है। उसी के आधार पर उनके यहाँ सन्धि और विग्रह का काम चलता है और समस्त संसार के काम भी लेख के ही अधीन होते हैं। (पुष्पयुद्धमपि नीतिवेदिनो नेच्छन्ति किं पुनः शस्त्रयुद्धम् // 30 //

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