________________ 161 प्रकीर्णसमुद्देशः काव्य के गुण- इस प्रकार हैं :-सुनने में सुखद, नवीन, और अविरोधी अर्थ एवं कल्पनाओं से परिपूर्ण, शब्द और अर्थ उभयविध अलंकारों से युक्त न न्यून न अधिक वचनों के प्रयोग से युक्त ओर अत्यन्त स्फुट पद तथा वाक्य सम्बन्ध का होना। (अतिपरुषवचनविन्यासत्वमनन्वितगतार्थत्वं, दुर्बोधानुपपन्नपदोपन्यासम् , अयथार्थयतिविन्यासत्वम् , अभिधानाभिधेयशून्यत्वम् , इति काव्यस्य दोषाः // 6 // काव्य के दोष निम्नलिखित हैं : अत्यन्त कर्कश वाक्य रचना, असम्बद्ध और उक्त अथं की पुनः आवृत्ति करना, कठिनता से समझ में आने योग्य एवं ध्याकरण से सिद्ध न होने वाले पदों का प्रयोग करना, अनुचित स्थानों पर पति अर्थात् विराम का प्रयोग करना, कोश आदि में कथित शब्दों के प्रयोग से शून्य होना। .( वचनकविः, अर्थकविः, उभयकविः, वर्णकविः, चित्रकविः, दुष्कर कविः, अरोचकी, सम्मुखाभ्यवहारी चेत्यष्टौ कवयः // 7 // वचन कवि अर्थात् कालिदास आदि के समान प्रसाद गुण सम्पन्न कविता करने वाला, अर्थकषि अर्थात् भारवि के समान गूढार्थ कविता करनेवाला, उभयकवि अर्थात् माघ आदि कवि के समान शब्द और अर्थ दोनों के प्रयोग में अत्यन्त कुशल, वर्णकवि, चित्रकवि और क्लिष्ट कविता करनेवाला, अरोचकी अर्थात् अरुचि उत्पन्न करनेवाली कविता करनेवाला, और सम्मुखाभ्यवहारी अर्थात् सामने ही कविता बना देने वाला--आशुकवि ये आठ प्रकार के कवि होते हैं। (मनः प्रसादः, कलासु कौशलं, सुखेन चतुर्वर्गविषया व्युत्पत्तिः, आसंसारं च यश इति कविसङ्ग्रहस्य फलम् // 8 // राजा को अपनी सभा में कवियों का संग्रह करने से ये लाभ होते हैं। कवि की कविताएं सुन सुन कर मन प्रसन्न रहता है, विभिन्न प्रकार की कलाओं में निपुणता प्राप्त होती है, धर्म, अर्थ काम और मोक्ष के सस्बन्ध का ज्ञान सुखपूर्वक हो जाता है तथा संसार की सत्ता जब तक है तब तक उस राजा का यश कवि की कविता के माध्यम से बना रहता है। आलप्तिशुद्धिः, माधुर्यातिशयः, प्रयोगसौन्दर्यम , अतीब ममृणता, स्थान कम्पित कुहरित-आदि भावः, रागान्तर संक्रान्तिः, परिगृहीतरागनिर्वाहः, हृदयग्राहिता चेति गीतस्य गुणाः॥३॥ बालाप का शुद्ध होना, अत्यधिक माधुर्य, पदरचना का सौष्ठव, अत्यन्त स्निग्धता और कोमलता, ऊंचा स्तर करके गा सकने योग्य, धुन में गा