Book Title: Nitivakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Ramchandra Malviya
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 202
________________ प्रकीर्णसमुद्देशः 16 देवता, ब्राह्मण, अतिथि और बन्धु-बान्धवों के सत्कार में त्रुटि न होना ये सप वारसंग्रह अर्थात् विवाह के फल हैं। (गृहिणी गृहमुच्यते न पुनः कुड्यकटसंघातः // 21 // गृहिणी का नाम गृह हैं न कि इंट-पत्थर और लकड़ी के समूह का।) (गृहकर्मविनियोगः परिमितार्थत्वम् , अस्वातन्त्र्यं सदा मातृव्यञ्जनस्त्रीजनावरोध इति कुलवधूनां रक्षणोपायः // 32 // __ घर के कामों में लगाये रखना, सीमित रुपया पैसा वेना, अधिक स्वच्छन्दता का न होने देना और सदा बड़ी बूढ़ी स्त्रियों के बीच रखना ये सब कुलबधुओं की रक्षा के उपाय है।) (रजक्रशिला, कुकुरखर्परसमा हि वेश्याः कस्तास्वमिजातोऽभिरज्येत // 33 // ___वेण्याएं धोबी की शिला एवं कुत्ते के भोजन के लिये रखे गये मिट्टी के खप्पड़ के समान होती हैं कौन कुलीन उन में अनुरक्त होना चाहेगा अर्थात् कोई कुलीन जिसे अपने वंश-वैभव का अभिमान होगा वेश्यागामी नहीं होगा। (दानार्भाग्य, सत्कृतौ परोपभोग्यत्वम् , आसक्तौ परिभवो मरणं वा महोपकारेप्यनात्मीयत्वं, बहुकालसम्बन्धेऽपि त्यक्तानां तदैव पुरुषान्तर. गामित्वमिति वेश्यानां कुलागतो धर्मः / / 34 // प्रेमी के दान-मान से कभी सन्तुष्ट न होना सत्कार करते रहने पर भी दूसरों से सम्भोग करना, उन पर अत्यन्त आसक्त होने पर या तो अनाहत होना अथवा मरण को प्राप्त करना, महान् उपकार करने पर भी आत्मीयता का अभाव पाया जाना, बहुत समय का भी सम्बन्ध होने पर परित्यक्त होने पर तत्क्षण ही अन्य पुरुष से सम्बन्ध कर लेना ये सब वेश्याओं के कुल परम्परागत धर्म होते हैं। [इति विवाहसमुद्देशः] 32. प्रकीर्णसमुद्देशः . (समुद्र इव प्रकीर्णकसूक्तरत्नविन्यासनिबन्धन प्रकीर्णकम् // 1 // समुद्र में जिस प्रकार विशाल रस्नराशि इतस्ततः बिखरी हुई है उसी प्रकार बिभिन्न प्रसंगों के उपयुक्त सुभाषित रत्नों का विन्यास जिसमें हो उसे प्रकोणंक कहते हैं।

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