Book Title: Nitivakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Ramchandra Malviya
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

Previous | Next

Page 188
________________ युद्धसमुद्देशः 175 देव की गति कुटिल होती है वह मरणोन्मुख को भी जिला देती है और जीवितेच्छु को भी भार डालती है। अर्थात् देवगति को कोई समझ नहीं सकता बहुधा एकदम मरता हुआ प्राणा जी उठता है और सर्वथा स्वस्थ व्यक्ति जिसके जीने की पूरी सम्भावना मनुष्य करता रहता है-मर जाता है। अतः जीवन-मरण के प्रश्न को देव पर डालकर राजा को युद्ध करना ही उचित है। (दीपशिखायां पतंगवदैकान्ति के विनाशेऽविचारमपसरेत् // 14 // ) दीपक की शिखा ( लो ) में जिस प्रकार पतिगे का निश्चित विनाश है उसी प्रकार युद्ध में अपना निश्चित विनाश समझकर राजा को युद्ध से, बिना अधिक विचार किये हुए ही पलायन कर देना चाहिए / (जीवितसंभवे देवो देयात् कालबलम् // 15 // जीवन की संभावना अर्थात् बायु रहने पर देव ही युद्ध काल में निबंल को भी सबल बना देता है / जिससे वह विजयी हो जाता है। विरम् अल्पमपि सारं बलम् , न भूयसी मुण्डमण्डली // 16 // शक्ति और साहसहीन बहुत बड़ी सेना की अपेक्षा थोड़ी भी वस्तुतः शक्तिशाली सेना श्रेष्ठ है। (असारबलभङ्गः सारबलभंगं करोति // 12) जहां सशक्त और अशक्त दोनों प्रकार की सेनाएं संग्राम भूमि में उपस्थित होती हैं वहां अशक्त सेना के नाश अथवा स्वाभाविक भगदड़ से सारवान् = सशक्त सेना में भी भगदड़ मच जाती है और उसका विनाश हो जाता है। .. (नाप्रतिग्रहो युद्धमुपेयात् / / 18 // प्रतिग्रह अर्थात् सैन्य से सुसज्जित हुए बिना अकेले युद्ध में न जाना चाहिए। (राजव्यञ्जनं पुरस्कृत्य पश्चात स्वाम्यधिष्ठितस्य सारबलस्य निवेशनं प्रतिग्रहः // 16 // राजचिह्न पताका और मण-वाय आदि मागे करके उसके पीछे स्वामी से अधिष्ठित शक्तिशाली सैन्य को सज्जा का नाम 'प्रतिग्रह' है।) (सप्रतिग्रहं बलं साधु युवायोत्सहते // 20 // ) प्रतिग्रह युक्त सेना युद्ध के लिये भली प्रकार से उत्साहित होती है। . (पृष्ठतः सदुर्गजला भूमिबलस्य महानाश्रयः / / 21 सेना के पृष्ठभाग में जलयुक्त दुर्ग का होना सेना के लिये महान् बाश्रय (सहारा ) होता है। (नद्या नीयमानस्य तटस्थपुरुषदर्शनमपि जीवितहेतुः // 22 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214