________________ 162 नीतिवाक्यामृतम् (पौरुषमवलम्बमानस्यार्थानर्थयोः सन्देहः / / 12 / ) उद्योगी पुरुष का कार्य सिद्ध होगा अथवा असिद्ध रहेगा इस में सन्देह स्वाभाविक है। (निश्चित एवानों देवपरस्य / / 13 / ) देववादी के लिये तो अनर्थ निश्चित ही रहता है। (आयुरौषधयोरिव देवपुरुषकारयोः परस्परसंयोगः समीहितमर्थ साधयति // 14 // जिस प्रकार आयु शेष रहने पर औषध के संयोग से मनुष्य का रोग दूर होता है उसी प्रकार देव और उद्योग दोनों के परस्पर सहयोग से ही मनुष्य अपना मनोरथ पूर्ण करने में समर्थ होता है। अनुष्ठीयमानः स्वफलमनुभावयन्न कश्चिद् धर्मोऽधर्ममनुबध्नाति / 1 / / 8 किसी भी धर्म का अनुष्ठान मनुष्य को उस धर्माचरण का शुभ फल देता है और उसे प्रधर्म से बचाता है / (त्रिपुरुषमूर्तित्वान्न भूभुजः प्रत्यक्षं दैवमस्ति / 16 / / ) .. राजा ब्रह्मा विष्णु महेश को मूत्ति होता है अतः उसका कोई प्रत्यक्ष देवता नहीं होता। (प्रतिपन्नप्रथमाश्रमः, परे ब्रह्मणि निष्णातमतिः, उपासितगुरुकुलः, सम्यग विद्यायामधीती, कौमारवयोऽलंकुर्वन् क्षत्रपुत्रो भवति ब्रह्मा // 11 // प्रथम अर्थात् ब्रह्मचर्याश्रम में प्रविष्ट परब्रह्म, के चिन्तन में संलग्न, गुरु कुल में रहकर गुरुओं की उपासमा किये हुए, वेद विद्या अथवा ब्रह्मविद्या का अध्ययनशील कुमारावस्था को अलंकृत करता हुआ, क्षत्रिय पुत्र ब्रह्मा के समान होता है। (संजातराज्यलक्ष्मीदीक्षाभिषेकं स्वगुणैः प्रजास्वनुरागं जनयन्तं राजानं नारायणमाहुः // 18 // राज्य लक्ष्मी की दीक्षा से अभिषिक्त अर्थात् राज्याभिषेक हो जाने के अनन्तर प्रजा का प्रेम प्राप्त करता हुआ राजा नारायण का रूप कहा गया है। (प्रवृद्धप्रतापतृतीयलोचनानलः, परमैश्वर्यमातिष्ठभानो राष्ट्रकण्टकान् द्विषद् , दानवान् छेत्तुं यतते विजिगीषुभूपतिर्भवति पिनाकपाणिः // 1 // धधकती हुई प्रतापाग्नि रूप तृतीय नेत्रवाला, परम ऐश्वर्य का उपभोग करता हुआ राष्ट्र के लिये कण्टक स्वरूप शत्रु रूप दानवों का नाश करने के लिये उचत, विजय की कामना करने वाला राजा पिनाकपाणि महादेव का स्वरूप है।