________________ . 88 नीतिवाक्यामृतम् अपराध से अपराधी का सम्बन्ध न सिद्ध हो तो जिस न्यायकर्ता ने दण दिया हो उसे उत्तम साहस दण्ड दे। बोलने का नियम/परमर्मस्पर्शकरम् , अश्रद्धेयम् , असत्यम् , अतिमात्र च न भाषेत // 30 // दूसरे को मर्मान्तक पीडाकारी, अविश्वास योग्य, असत्य ओर बहुत ज्यादा न बोले। वेष का नियम-- (वेषमाचारं वाऽनभिजातं न भजेत् / / 31 // ऐसा वेष और व्यवहार न करे जो अभिजात न हो / अभिजात का अर्थ होता है कुलीन, सवंश में उत्पन्न और शिष्ट, अतः अनमिजात इससे प्रतिकूल अर्थ का वाची हुआ। इस प्रकार इस सूत्र का स्पष्टार्थ होगा कि मनुष्य को चाहिए कि वह ऐसी वेष भूषा न धारण करे जो शिष्ट समाज में न व्यवहृत होती हो तथा ऐसा व्यवहार भी किसी से न करे जो शिष्ट परम्परा के अनुकूल न हो। राजा के अनुसार प्रजा का आचार-व्यवहारप्रभौ विकारिणि को नाम न विकुरुते // 32 // राजा के विकृत होने पर कौन नहीं विकृत होता ?) (अधर्मपरे राज्ञि को नाम नाधर्मपरः // 33 // राजा के अधार्मिक होने पर कौन नहीं अधार्मिक होता?) राजा के द्वारा मानापमान का महत्त्व(राज्ञावज्ञातो यः स सर्वैरवज्ञायते // 34 // जो राजा से तिरस्कृत होता है वह सब के द्वारा तिरस्कृत होता है / (पूजितं हि पूजयन्ति लोकाः // 35 // राजा से पूजित और सम्मानित को सब लोग पूजते हैं अर्थात् सम्मान करते हैं। प्रजा को देखभाल के विषय में राजा का कर्तव्य(प्रजाकार्य स्वयमेव पश्येत् // 36 // राजा को चाहिए कि वह प्रजा के कामों को स्वयं देखे। (यथावसरमप्रतीहारसंगं द्वारं कारयेत् / / 27 // अवसर के अनुकूल राजा अपने द्वार परसे द्वारपाल को भी हटा दे जिससे लोग सरलता से राजा से मिल सके।)