________________ . 156 नीतिवाक्यामृतम् विवाद-मुकदमा प्रारम्भ करके जो न्यायालय में उपस्थित न हों, पुकार होने पर चला जाय, उसका प्रथम वक्तव्य आगे के वक्तव्य से विरुद्ध पड़ता हो, पूर्वकथित युक्तियुक्त बात का उत्तर देने में असमर्थ हो और युक्तियुक्त को. न माने, अपना दोष न मान कर दूसरे का दोष निकाले यथार्थ न्याय होने पर भी न्यायालय का अनौचित्य बतलावे यह सब पराजित के लक्षण हैं। छलेनाप्रतिभासेन वचनाकौशलेन चार्थहानिः // 8 // विवाद में यदि सभासद चलकपट करें, अथवा अभियोग के विषय में ठीक परामर्श और अनुसन्धान न करें बोलने में निपुण न हों तो वादी प्रतिवादी की व्यर्थ हानि होती है। (भुक्तिः, साक्षी, शासनं प्रमाणम् // 6 // विवाद में तीन चीज प्रमाण मानी जाती है भुक्ति अर्थात् जमीन जायदाद पर बारह बर्ष तक का कब्जा, गवाह, और न्यायालयीय लेख दस्तावेज आदि / (भुक्तिः सापवादा, साक्रोशाः साक्षिणः शासनं च कूटलिखितमिति न विवादं समापयन्ति // 10 // अधिकार अथवा कब्जा बलात् किया गया हो, गवाह सदोष हों, और ( दस्तावेज ) अधिकार पत्र साफ लिखा पढ़ा न हो तो विवाद का मुकदमे का अन्त नहीं हो पाता। (बलात्कृतमन्यायकृतं राजोपधिकृतं च न प्रमाणम् // 11 // जो बात बलात् कराई गई हो, अन्याय से हुई हो अथवा राज-बल से हुई हो वह प्रमाणभूत नहीं होती। वेश्याकितयोरुक्तं ग्रहणानुसारितया प्रमाणयितव्यम् // 12 // वेश्या और जुआड़ी का वचन जितना ग्राह्य हो उतना प्रमाणित मानना चाहिये। ___असत्यकारे व्यवहारे नास्ति विवादः // 14 // सर्वथा झूठे व्यवहार में विवाद नहीं होता। अर्थात् जब वादीप्रतिवादी दोनों ही झूठे होंगे तो अभियोग क्या चलेगा। (नीवीविनाशेषु विवादः पुरुषप्रामाण्यात् सत्यापयितव्यो दिव्यक्रियया वा // 14 // धरोहर के रूप में रखे गये मूलद्रव्य (जी) के विवाद में जिसके यहां वह वस्तु रखी गई अथवा जिसने रक्खी उस पुरुष की विख्यात प्रामा. . . प्रतिभास के अनुसन्धान और परामर्श अर्थ के लिये देखिए काव्य प्रकाश दशम उल्लास प्रारम्भ-वाच्यवैचित्र्यप्रतिभासादेव पर वामन टीका //