Book Title: Nitivakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Ramchandra Malviya
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 154
________________ 141 सदाचारसमुद्देशः (अपरीक्षितमशोधितं च राजकुले न किञ्चित् प्रवेशयेन्निष्का• सयेद् वा / / 151 // बिना परीक्षा और शोध के कोई भी वस्तु या व्यक्ति का राजकुल में प्रवेश और निष्कासन नहीं होने देना चाहिए। (श्रूयते हि स्त्रीवेषधारी कुन्तलनरेन्द्रप्रयुक्तो गूढपुरुषः कर्णनिहितेनासिपत्रेण पल्लवनरेन्द्र हयपतिश्च मेष-विषाण-निहितेन विषेण कुशस्थलेश्वरं जधानेति / / 112 / / / सुनने में आता है कि कुन्तल नरेश के द्वारा प्रषित स्त्रीवेषधारी किसी गुप्त पुरुष ने कान के साथ छिपाई हुई तलवार या छुरे स पल्लवदेश के राजा को मार डाला और हयपति ने भेड़े की सींग के भीतर छिपाये हुए विष के प्रयोग से कुशस्थलेश्वर ( द्वारकाधीश ) को मार डाला। (सर्वत्राविश्वासे नास्ति काचित् क्रिया / / 113 / / सर्वत्र अविश्वास ही रखने से कोई भी काय नहीं हो सकता। [इति दिवसानुष्ठानसमुद्देशः] ... ... 26. सदाचार समुद्देशः लोभप्रमादविश्वासवृहस्पतिरपि पुरुषो वध्यते कञ्च्यते वा // 2 // ) बृहस्पति के समान बुद्धिमान् पुरुष भी लोभ, असावधानी और विश्वास के कारण मारा जाता है अथवा वञ्चित होता है। (बलवताधिष्ठितस्य गमनं तदनुप्रवेशो वा श्रेयान् अन्यथा नास्ति क्षेमोपायः / / 2 / / __ अपने से बलशाली के द्वारा आक्रान्त होने पर देशत्याग कर अन्यत्र चले जाना अथवा उससे सन्धि कर लेना ही कल्याणकर है। इससे अतिरिक्त कोई दुसरा कल्याणकारी उपाय नहीं है। विदेशवासोपहतस्य पुरुषकारः को नाम ? येनाविज्ञातस्वरूपः पुमान् स तस्य महानपि लघुरेव // 3 // परदेशगमन रूप दुर्भाग्य से पीड़ित व्यक्ति का अपनी योग्यता और महत्ता आदि के परिचय का पुरुषार्थ व्यर्थ होता है क्योंकि जो जिसके स्वरूप अर्थात् योग्यता और विद्या आदि से परिचित नहीं है उस व्यक्ति की दृष्टि में महान् भी व्यक्ति क्षुद्र ही प्रतीत होता है। अलब्धप्रतिष्ठस्य निजान्वयेनाहङ्कारः कस्य न लाघवं करोति // 4 //

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