________________ 140 नीतिवाक्यामृतम् / पद्मिनी जाति की स्त्री के लिये उत्तर दिशा का प्रचुर वर्षा वाला प्रदेश विशेष रूप से अनुराग क्रीड़ा में सहायक होता है / अर्थात् प्रथम प्रकृति के नवदम्पति को उत्तर दिशा वाले वर्षायुक्त प्रदेशों में काम-क्रीडा में विशेष आनन्द का अनुभव होता है। द्वितीयप्रकृतिः सशाद्वलमृदूपवनप्रदेशः / / 102 // इसी प्रकार द्वितीय प्रकृति अर्थात् शशजाति के पुरुष और शंखिनी जाति की स्त्री के लिये हरियाली से सुशोभित मनोरम उपवन, बाग, हराभरा जंगल आदि विशेष आनन्ददायक होता है / तृतीयप्रकृतिः सुरतोत्सवाय स्यात् / / 103 / / / इसी प्रकार तृतीय प्रकृति अर्थात् अश्व प्रकृति का पुरुष रतिकर्म में अत्यन्त आह्लादकर होता है / स्त्रीपुंसयोन सम-समायोगात् परं वशीकरणमस्ति // 104 / / परस्पर समान प्रकृति के संयोग से बढ़कर अन्य कोई उपाय स्त्री और पुरुष के वशीकरण के लिये नहीं है। (प्रकृतिरूपदेशः स्वाभाविकं च प्रयोगवैदग्ध्यमिति सम-समायोगकारणानि // 105 / / ) ___ समान प्रवृत्ति का होना, कामशास्त्र का समुचित शिक्षण और स्वाभाविक . व्यवहार चातुर्य ये सब संयोग के हेतु हैं। क्षुत्तर्ष-पुरीषाभिष्यन्दातस्याभिगमो मापत्यमनवद्यं करोति / / 106 / / भूख प्यास और मल-मूत्र के वेग से पीड़ित स्त्री पुरुषों के संयोग से उत्तम सन्तान नहीं होती। (न सन्ध्यासु न दिवा नाप्सु न देवायतने मैथुनं कुर्वीत // 107 // ) सन्ध्याकाल, दिन और जल तथा देवमन्दिर में मैथुन न करे। पर्वणि पर्वणि सन्धौ उपहते वाह्नि कुलस्त्रियं न गच्छेत् / / 108 // अमावास्या-पूणिमा आदि पर्व, प्रात: सायं की सन्धि वेला और ग्रहण वाले दिन में कुल-स्त्री अर्थात् अपनी विवाहिता स्त्री के साथ समागम न करे / न तद्गृहाभिगमने कामपि त्रियमधिशयीत // 106 / / किसी पराई स्त्री के घर जाकर उसके साथ शयन न करे। (वंशवयोवृत्तविद्याविभवानुरूपो वेषः समाचारो वा न विडम्बयति // 110 // ) वंश, अवस्था, सदाचार, विद्या और अपने ऐश्वयं के अनुरूप वेष-भूषा रखने तथा व्यवहार करने से किसी की कोई विडम्बना निन्दा आदि नहीं होती।