Book Title: Nitivakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Ramchandra Malviya
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 157
________________ . 144 नीतिवाव्यामृतम् बिना बात की बात बिगड़ बैठने वाले राजा के पास सेवकों का अभाव रहता है। (न मृतेषु रोदितव्यमश्रुपातसमा हि किल पतन्ति तेषां हृदयेष्वङ्गाराः // 26 // ) किसी व्यक्ति के मृत हो जाने पर रुदन नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे उस मृत व्यक्ति को अश्रुपात के तुल्य अङ्गारपतन की हार्दिक पीड़ा होती है। (अतीते च वस्तुनि शोकः श्रेयानेव यदास्ति तत्समागमः || 2011) नष्ट हुए पदार्थ के लिये शोक करना तभी कल्याणकारक समझा जायगा जब कि वह पुनः मिल जाय किन्तु ऐसा कभी होता नहीं। अतः मृत व्यक्ति अथवा नष्ट पदार्थ के लिये शोक करना सर्वथा व्यर्थ है / (शोकमात्मनि चिरमनुवासयत्रिवर्गमनुशोषयति / / 28 // ).. किसी वस्तु के लिये चिरकाल तक शोक करते रहने से धर्म, अर्थ और काम तीनों का नाश होता है। (स किंपुरुषो योऽकिञ्चनः सन् करोति विषयाभिलाषम् / / 26 जो व्यक्ति दरिद्र होकर भी अगम्य विषयों की अभिलाषा करता है वह निन्दनीय है। (अपूर्वेषु प्रियपूर्व सम्भाषणं स्वर्गच्युतानां लिङ्गम् / / 30 // ) जो व्यक्ति अपरिचितों से मिलकर मधुर भाषणपूर्वक बातचीत करे उसे समझना चाहिये कि वह किसी कारणवश स्वर्ग से भ्रष्ट होकर इस मृत्युलोक में आ गया है। (न ते मृता येषामिहास्ति शाश्वती कीतिः / / 31 // जिसकी कीर्ति इस लोक में निरन्तर वर्तमान है वह मृत होकर भी जीवित है। स केवलं भूभाराय जातो येन न यशोभिर्धवलिताति भुवनानि // 32 // जिसने अपनी कोत्ति-चन्द्रिका से भुवनों को उज्ज्वल नहीं किया उसका जन्म पृथ्वी के लिये व्यर्थ भार है। (परोपकारो योगिनां महान् भवति श्रेयोबन्ध इति / / 33 / / ) योगियों-महापुरुषों द्वारा किये गये जनकल्याण के कार्य लोगों के लिये महती कल्याण परम्परा है। का नाम शरणागतानां परीक्षा || 34 / / ) __ जो व्यक्ति अपनी शरण में आ जाय उसको परीक्षा नहीं करनी चाहिए।

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