________________ सदाचारसमुद्देशः 143 जो परम्परा से प्राप्त बैरभाव को शान्त नहीं कर सकता उसके वंश का विस्तार कैसे हो सकता है ? अर्थात् किसी से पुराना बैर, ठना रहने पर अवश्य ही कभी न कभी मारपीट में कुछ आदमी मरेंगे और इस प्रकार वंश की वृद्धि में बाधा होगी अतः बर मिटा दे। (भीतेष्वभयदानात परं न दानमस्ति / / 17 / / ) गरे हुये को अभयदान देने से बढ़कर दूसरा कोई श्रेष्ठ दान नहीं है। ( स्वस्यासम्पत्तौ न चिन्ता किञ्चित् काक्षितमर्थ (प्रसूते) दुग्धे किन्तूत्साहः / / 18 // ) ___अपनी दरिद्रता के विषय में चिन्ता में पड़े रहने से कोई लाभ नहीं होता किन्तु उत्साह रखने से अच्छा फल मिलता है। अर्थात् उत्साहपूर्वक उद्योग करने से लक्ष्मी अवश्य प्राप्त होती हैं। स खलु स्वस्यैवापुण्योदयोऽपराधो वा (यः) सर्वेषु कल्पफलप्रदोऽपि स्वामी भवत्यात्मनि वन्ध्यः / / 16 // ___ यदि कोई स्वामी सर्वसाधारण के लिये कल्पवृक्ष के तुल्य फलदायक हो किन्तु मात्र अपने को उससे कोई फल न मिल सके तो उसे अपने ही पापों का उदय अथवा अपना ही कोई अपराध समझना चाहिए / ( स सदैव दुःखितो यो मूलधनमसंवर्धयन्ननुभवति / / 20 // वह व्यक्ति सदा ही दुखी बना रहता है जो मूल धन का उपयोग करता है। मूर्खदुर्जनचण्डालपतितैः सह संगतिं न कुर्यात् / / 21 // मूर्ख, दुर्जन, चण्डाल और पतित पुरुषों की संगति न करे। कि तेन तुष्टेन यस्य हरिद्राराग इव चित्तानुरागः / / 22 / / जिसका प्रेम हलदी के रंग के समान धो देने से छूट जानेवाला हो अर्थात् थोड़े में ही बदल जाने वाला हो उस मनुष्य के सन्तुष्ट हो जाने से भी क्या लाम होगा ? वह क्षणभर में फिर बदल कर अहित भी कर सकता है। स्वात्मानमविज्ञाय पराक्रमः कस्य न परिभवं करोति // 23 // : अपनी शक्ति और सामथ्र्य का अनुमान किये बिना दूसरे पर आक्रमण करने से किसकी पराजय नहीं होगी? नोक्रान्तिः पराभियोगस्योत्तरं किन्तु युक्तरुपन्यासः // 24 // शत्रु के आक्रमण का वास्तविक उत्तर स्वयं भी आक्रमण कर देना नहीं होता, किन्तु युक्ति से कोई बात करना ही उसका वास्तविक उत्तर होता है। राज्ञोऽस्थाने कुपितस्य कुतः परिजनः // 25 // .