________________ 102 नीतिवाक्यामृतम् नमक के सङ्ग्रह की आवश्यकता(लवणसंग्रहः सर्वरसानामुत्तमः / / 71 // ) नमक का संग्रह सब रसों के सङ्ग्रह से श्रेष्ठ है। (सर्वरसमप्यलवणमन्नं गोमयायते // 72 |) दुध दही आदि सब रसों के होने पर भी बिना नमक का भोजन गोबर के समान लगता है। [ इत्यमात्यसमुद्देशः] 19. जनपदसमुद्देशः राष्ट्र का लक्षण(पशुधान्यहिरण्यसम्पदा राजते शोभते इति राष्ट्रम् / / 1) पशु, अन्न और सुवर्ण सम्पत्ति से जो सुशोभित हो वह राष्ट्र है / देश का लक्षण-- (भर्तुर्दण्डकोशवृद्धि ददाताति देशः / / 2 / / जो राजा को अधिकार और कोशवृद्धि दे वह देश है। विषय का लक्षण(विविधवस्तु प्रदानेन स्वामिनः सद्मनि गजान् वाजिनश्च विसिनोति बध्नाति इति विषयः // 3 // नाना प्रकार की वस्तुओं को देकर राजा के घर में हाथी घोड़े बंधाने के कारण ( देश को ) विषय कहा गया है। मण्डल का अर्थसर्वकामदुधात्वेन पतिहृदयं भण्डयत्ति भूषयतीति मण्डलम् // 4 // कामधेनु के समान सब प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करके स्वामी के हृदय को मण्डित करने के कारण ( राज्यकी ) मण्डल संज्ञा है।) जनपद का अर्थ(जनस्य वर्णाश्रमलक्षणस्य द्रव्योत्पत्तेर्वा पदं स्थानमिति जनपदः // // ब्राह्मण शत्रिय वैश्य शूद्र इन चार वर्णों और ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास इन चार आश्रम वालों के रहने के स्थान और द्रव्य की उत्पत्ति का पद अर्थात् स्थान होने के कारण जनपद संज्ञा हैं / ) "दरत्" का अर्थ(निजपतेरुत्कर्षजनकत्वेन शत्रहृदयं दारयति भिनत्तीति दरत् // 6 //