Book Title: Nitivakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Ramchandra Malviya
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 142
________________ राजरक्षासमुहेशः (अलं तया श्रिया या किमपि सुखं जनयन्ती व्यासङ्गपरम्पराभिः शतशो दुःखमनुभावयति // 83M) ___उस राज्यलक्ष्मी से क्या लाभ जो थोड़ा सुख देकर सैकड़ों चिन्ताओं से मस्तकर दुःख भोग कराती है / निष्फलो ह्यारम्भः कस्य नामोदर्केण सुखावहः / / 84 // बिना प्रयोजन किसी कार्य का प्रारम्भ करने से किसी को भी परिणाम में सुख नहीं मिलता। परक्षेत्रं स्वयं कृषतः कर्षापयतो वा फलं पुनस्तस्यैव यस्य तत् क्षेत्रम् / / 85 // पराया खेत स्वयं जोतने अथवा दूसरे से जुतवाने पर भी फल का भागी तो वही होगा जिसका वह खेत होगा। राज्य के क्रमानुसार अधिकारी-- (सुत सोदर-सपत्न-पितृव्य कुल्य-दौहित्र-आगन्तुकेषु पूर्वपूर्वाभावे भवत्युत्तरस्य राज्यपदावाप्तिः // 86 // पुत्र, सहोदर भ्राता, सौतेला सम्बन्धी, चाचा, अपने कुल का कोई व्यक्ति, नाती ( लड़की का लड़का) और इधर-उधर से आकर रह गया व्यक्ति इन सब में क्रमशः पूर्व-पूर्व का अभाव होने पर उत्तर के व्यक्ति को राज्यपद प्राप्त होता हैं। जो कोई दुष्कर्म कर चुका हो कर रहा हो अथवा करनेवाला हो तो उसमें निम्न चिह्न पाये जाते हैं। (शुष्कश्याममुखता, वास्तम्भः, स्वेदो, विज़म्भणम् , अतिमात्रं वेपथुः, प्रस्खलनम् , आस्यप्रेक्षणम् , आवेगः कर्मणि- भूमौ वाऽनवस्थानमिति दुष्कृतं कृतवतः, कुर्वतः करिष्यतो वा लिङ्गानि // 7 // - मुंह का सूखना और विवणं हो जाना, अर्थात् म्लान होकर रङ्ग उतर जाना, वाणो का अवरुद्ध हो जाना, पसीना छूटना, जमुहाई आना, शरीर में बहुत ज्यादा कंपकंपो पैदा हो जाना, लड़खड़ाना, एकटक होकर मुंह देखते रह जाना, काम में घबड़ाहट और शीघ्रता करना, पृथ्वी पर बैठ न सकना अर्थात् स्थिर न होकर टहलते रहना। [इति राजरक्षासमुद्देशः]

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