________________ नीतिवाक्यामृतम् 25. दिवसानुष्ठानसमुद्देश इस समुद्देश में आचार्य प्रवर ने मानव जीवन को सुखमय बनाने वाली सुन्दर दिनचर्या का विस्तृत वर्णन किया है अतः यह समुद्देश अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है- . (ब्राह्ये मुहूर्त उत्थायेतिकर्तव्यतायां समाधिमुपेयात् / / 1 // ) प्रातः काल ब्राह्म मुहूर्त में उठकर एकाग्रचित्त से अपने कर्तव्य कर्म का चिन्तन करे। (सुखनिद्राप्रसन्ने मनसि प्रतिफलन्ति यथार्थवाहिका बुद्धयः // 2 // उस समय सुख पूर्वक निद्रा से प्रसन्न चित्त में सद्विचार प्रतिविम्बित होते हैं। (उदयास्तमनशायिषु धमकालातिक्रमः // 3 // ) सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सोने वालों का धार्मिक कृत्यों का समय निकल जाता है। (आत्मवक्त्रमाज्ये दर्पणे वा निरीक्षेत / / 4 / / : प्रातः काल उठकर अपना मुख घृन अथवा दपंण में देखे ) (न प्रातवर्षवरं विकलाङ्गं वा पश्येत् / / 5 // प्रातः काल नपुंसक और अङ्गहीनों का दर्शन न करे / ) सन्ध्यास्वधौतमुखपादं ज्येष्ठा देवता नानुगृह्णाति // 6 // सूर्योदय और सूर्यास्त की सन्धि वेला में जिसका मुख और पैर प्रक्षालित नहीं होता उस पर महान् देवता अनुग्रह नहीं करते। (नित्यम् अदन्तधावनस्य नास्ति मुखशुद्धिः // 7 // ) नित्य दन्त धावन न करने वाले का मुख अशुद्ध रहता है अर्थात् स्वच्छ न होने के कारण उससे दुर्गन्ध आता है / . (न कार्यव्यासङ्गेन शारीरं कर्मोपहन्यात् / / 8 / / ) कार्यों में आसक्त होकर शारीरिक कर्मों का परित्याग न करे। (न खलु युगैरपि तरङ्गविगमात् सागरे स्नानम् // 6 // ) समुद्र की तरङ्गे युग-युग से भी शान्त हो गई हों तब भी उसमें स्नान नहीं करना चाहिए / (वेग-व्यायाम-स्वाप-स्नान * भोजन * स्वच्छन्दवृत्ति कालान्नोपरुन्ध्यात् // 10 // ) मल-मूत्र आदि के परित्याग का वेग, व्यायाम, .शयन, स्नान, भोजन और स्वक्छन्द रूप से घूमने आदि के नियत समय का अतिक्रमण न करे।।