________________ अमात्यसमुद्देशः मान्योऽधिकारी राजाज्ञामवज्ञाय निरवग्रहश्वरति // 32 // जो व्यक्ति राजा के द्वारा समादरणीय और पूज्य हो उसे अधिकारी बनाने से वह राजाज्ञा का उल्लंघन कर निर्द्वन्द्व होकर घूमता है / चिरसेवको नियोगी नापराधेष्वाशङ्कते // 33 // पुराने सेवक को अधिकारी बना देने से वह अपराध कर बैठने पर भी नहीं डरता। . उपकर्ताधिकारी उपकारमेव ध्वजीकृत्य सर्वमवलुम्पति // 34 // ) जिसने अपने संग कोई उपकार किया हो ऐसे व्यक्ति को अधिकारी बनाने से वह अपने उपकार का ही सदा गुणगान करता हुआ स्वामी का सर्वस्व अपहरण कर लेता है। सहपांसुक्रीडितोऽमात्योऽतिपरिचयात् स्वयमेव राजायते // 35 // धूल मिट्टी में संग खेले हुए व्यक्ति को अधिकारी अथवा अमात्य बनाने से वह अत्यन्त परिचय के कारण स्वयं राजा के समान आचरण करता है। (अन्तर्दुष्टो नियुक्तः सर्वमनर्थमुत्पादयति / / 36 // जिसका हृदय कलुषित हो ऐसे को अधिकारी बनाने से वह सब प्रकार के उपद्रव करता है। शकुनिशकटालावत्र दृष्टान्तौ // 37 // इस विषय में शकुनि और शकटाल दृष्टान्त के रूप में है। गान्धार राज सुबल का पुत्र शकुनि दुर्योधन का मामा लगता था। दुर्योधन ने उसे अपना मन्त्री बनाया वह हृदय से दुष्ट प्रकृति का था अतः उसके कारण पाण्डवों से और दुर्योधन से वैर ठना और परिणामस्वरूप शकुनि और दुर्योधन दोनों का नाश हुआ। शकटाल राजा नन्द का मन्त्री था / वह भी स्वभाव से ही दुष्ट था। एक बार नन्द ने उसे कारागार का दण्ड दिया अनन्तर कुछ दिनों के बाद उसे ही पुनः मन्त्री बनाया उसने नन्द का उपकार भूल कर उसको नष्ट करने की . सोची और चाणक्य से मिलकर नन्द का नाश किया / ) सोऽधिकारी चिरं नन्दति यः स्वामिप्रसादेन नोत्सेकयति // 38 // वह अधिकारी चिरकाल तक आनन्द का उपभोग करता है जो स्वामी का कृपापात्र बनने पर गर्व नहीं करता। सुहृदि नियोगिन्यवश्यं भवति धनमित्रत्वनाशः॥ 39 // मित्र को अधिकारी बनाने से निश्चय ही धन और मित्र भाव का नाश होता है। 7 नी०