Book Title: Nirgrantha Pravachan
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ ( ६ ) वर्ष पहले मानव चेतना की इस विवशता को एक महर्षि ने एक मनीषी ने, एक लोक चेतना के उद्बोधक संत ने बड़ी तीव्रता के साथ अनुभव किया था। वैदिक विचारानुयायियों के पारा 'गीता' और बौद्धों के पास 'धम्मपद' जैसी सार-मूत पुस्तकें थीं, पर जैनों के पास ऐसी सुव्यवस्थित सुसम्पादित कोई एक पुस्तक नहीं थी । जिज्ञासुओं की मांग उठी और जैन दिवाकर श्री चौथमल जी महाराज की संकल्प-चेतना बलवती बनी। उन्होंने आगमों का गम्भीर अनुशीलन कर भगवान महावीर के उदात्त वचनों का एक सुव्यवस्थित संकलन प्रस्तुत किया - नियंग्य - प्रवचन ! निर्ग्रन्थ- मन की धन की गांठ से मुक्त, बाह्याभ्यन्तर ग्रन्थियों से मुक्त वीतराग त्रिः पुरुवाणी यही है निर्ग्रन्थ-प्रवचन | निर्ग्रन्थ की वाणी सुनने से पढ़ने से, मनन करने से - निन्यता आती है, व्यक्ति अपने बन्धनों से स्वयं ही मुक्त होता है और परमशान्ति का अनुभव करता है । आज के सन्दर्भ में 'निर्ग्रन्थ-प्रवचन' की उपयोगिता क्या है, कितनी हैयह बताने को आवश्यकता नहीं है। भगवान महाबीर की वाणी के छोटे-बड़े अनेकानेक संकलन आ रहे हैं और जन-मानस उनको स्वाध्याय करके लाभ उठा रहा है। किन्तु में निश्चय के साथ कह देना चाहता हूँ कि समग्रता एवं समीचीनता की दृष्टि से 'निर्ग्रन्थ-प्रवचन' चालीस वर्षं की यात्रा में सर्वप्रथम रहा है। परम श्रद्धेय गुरुदेव जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज की दूर- इष्टि और दीर्घ- परिश्रम का सुफल भारत एवं विदेश के हजारों-हजार जिज्ञासुनों को 'निर्ग्रन्थ-प्रवचन' के रूप में आज भी मिल रहा है और युग-युगों तक मिलता रहेगा । हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, गुजराती, कन्नड़ नादि भाषाओं में इसके संस्करण, अनुवाद इसकी सार्वजनीनता सिद्ध करते हैं । जैन दिवाकर जन्मशताब्दी के उपलक्ष्य में 'निर्ग्रन्थ प्रवचन' का यह नया संस्करण अनेक दृष्टियों से सुन्दर और भव्य बन पड़ा है। जिज्ञासु पाठकों के समक्ष यह अमृतकलश उद्घाटितकर रख दिया गया है, अब वे अपनी पूरी क्षमता के साथ अमृत पान कर जागतिक श्रम सापों से मुक्ति पाने का प्रयत्न करें । इत्पलम् - केवलमुनि

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 277