Book Title: Nirgrantha Pravachan Author(s): Chauthmal Maharaj Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar View full book textPage 4
________________ यह उपक्रम : भगवान श्री महावीर का २५वाँ निर्वाण शताब्दी समारोह भारत एवं विश्व में अत्यन्त उत्साहपूर्वक मनाया जा चुका है। इस आयोजन की अनेक उल्लेखनी मस्त जैन द्वारा मान्य 'समणसुतं' का प्रकाशन भी है। इसकी मूल प्रेरणा आचार्य संत विनोबा भावे द्वारा उबूमूत हुई यह भी एक महत्वपूर्ण कड़ी है । यह सच है कि भगवान महावीर की वाणी में आज भी वह अद्भुत शक्ति स्रोत दिया है जिसके अनुशीलन परिशीलन से भ्रान्त-उद्भ्रान्त मानवचेतना को शांति की अनुभूति होती है। दुर्बल आत्मा में शक्ति का नव संचार होता है । भगवान की दाणी आगमों में निबद्ध है । उनकी भाषा अर्धमागधी है, और वचन पुष्प विशाल आगम वाङ् मय में यत्र-तत्र विकीर्ण हैं । सामान्य जिज्ञासु के लिए यह सम्भव भी नहीं है और सुलभ भी नहीं है कि वह अगमों के गम्भीर क्षीर सागर में गोता लगाकर उस वाणी का रसास्वाद कर सके । अपनी अल्पज्ञता, व्यस्तता तथा आध्यात्मिक अक्षमता के कारण वह विदेश है कि चाहते हुए भी आनन्द के उस अक्षय-निर्भर में डुबकी नहीं लगा सकता । यह कितनी विचित्र और दयनीय स्थिति है मानव की कि सामने क्षीर सागर लहरा रहा है, और वह उसकी एक-एक बूंद के लिए तरस रहा है, अमृत का कलश भरा है, और वह छटपटा रहा है उसकी एक बूंद के लिए.... अमृत पान नहीं कर पा रहा है। जिनवाणी के जिज्ञासु-पिपासु भन्यों की इस विवशता तथा दमनीयता का अनुभव आज बड़ी तीव्रता के साथ हो रहा है, किन्तु आज से लगभग चालीसPage Navigation
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